लखनऊ: सूबे में विधान सभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। सत्ता से लेकर विपक्ष तक की सभी पार्टियां जनता को लुभाने का पूरा प्रयास कर रही है। ऐसे में पूर्वांचल की फिजाएं इस बार किसका रुख करेंगी। यह तो चुनावी प्रचार के शबाब पर पहुंचने के बाद ही तय हो पायेगा। लेकिन इसके पूर्व यह चर्चा एक बार फिर शुरू हो गई है कि पूर्वांचल की सीटों पर जिसका सबसे अधिक कब्जा होगा,सत्ता की कमान भी उसके हाथ ही आएगी।

आपको बता दें इस समय समाजवादी पार्टी पूर्वांचल में भाजपा के मजबूत सामाजिक समीकरण को नुकसान पहुंचाने की पूरी कोशिश कर रही है। भाजपा की सहयोगी रहने के बाद अब सपा के साथ आई ओम प्रकाश राजभर के नेतृत्व वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) अपने समुदाय के मतों का एक बड़ा हिस्सा खींच सकती है। वहीं, मौर्य-कुशवाहा मतदाताओं का वर्ग 2014 से हर चुनाव में सत्ताधारी पार्टी को मजबूत समर्थन देने के बावजूद उसकी ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिए जाने की शिकायत कर रहा है।

पूर्वांचल में अब बचा है आखिरी चरण का चुनावी रण

यूपी में पूर्वांचल का नाम आते ही यहां के पिछड़ेपन की चर्चा होने लगती है। पूर्वी यूपी में बीजेपी और सपा ने अपने सहयोगियों को 45 सीटें दी हैं। सत्ता के दो मुख्य दावेदारों के लिए यह इलाका अब बेहद अहम हो गया है। ये सीटें बस्ती, गोरखपुर, आजमगढ़, वाराणसी और मिर्जापुर संभाग में हैं, जहां अंतिम चरण में 7 मार्च को मतदान होना है। बसपा और कांग्रेस ने सभी सीटों पर चुनाव लड़ते हुए किसी भी दल के साथ गठबंधन नहीं किया है।

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