धर्म कर्म: इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि शरीर की मुक्ति तो श्मशान घाट पर हो जाती है लेकिन आत्मा की मुक्ति नहीं हो पाती है। मुक्ति का मतलब इसको छुटकारा मिल जाए। बंधन से यह मुक्त हो जाए। कर्म से यह विहीन हो जाए, कर्महीन हो जाए। पूजहि विप्र सकल गुण हीना। यह रजोगुण सतोगुण तमोगुण से हीन हो जाए और अपने घर अपने वतन अपने मालिक के पास पहुंच जाए। यह लक्ष्य बनाना है हमको-आपको की अपना काम जल्दी से बना लेना है। अपनी जीवात्मा को उस प्रभु में मिला करके दु:ख की दुनिया से, संकट से दूर हट जाना है। तो यह कब संभव होगा? जब कोई रास्ता बताने वाला मिलेगा। तो रास्ता बताने वाले, अपने घर पहुंचने वाले भी हमेशा इस धरती पर मौजूद रहते हैं। जैसे अपने गुरु महाराज (बाबा जयगुरुदेव जी) थे। गुरु महाराज इसी काम के लिए इस धरती पर आए थे। उनका यही एक निशाना था कि- हम आए वही देश से, जहां तुम्हारा धाम, तुमको घर पहुंचना, एक हमारो काम। एक लक्ष्य, एक उद्देश्य की हम तुमको तुम्हारे घर पहुंचा देंगे। आपको भी एक निशान यह बनाना कि अब इस दुख के संसार में दोबारा फिर नहीं आना है। यहां से संकल्प लेकर के आप सब लोग जाओ।

अब तक आपका अंतर का आंख कान खुला या नहीं खुला?

कुछ लोग ऐसे भी हो जो पहले से गुरु बनाये हुए हो। और उन्होंने कोई न कोई नाम बताया ही होगा। हमको उससे एतराज नहीं है। अभी तक आपने पूजा-पाठ किया या जो भी अभी तक किया, उसका आप देखो फल, रिजल्ट क्या मिला? जीवात्मा परमात्मा का यह जो रिश्ता है, उस रिश्ते के बारे में आपको बोध ज्ञान हुआ या नहीं हुआ? वह प्रभु, जीवात्मा चेतन है। तो इस जीवात्मा से चेतन मिला या नहीं मिला? आपकी अंदर की आंख, अंदर का कान खुला या नहीं खुला? यह देख लो। नहीं तो अब जो बताया जा रहा है, इसको करके देखना। राजस्थान में बहुत बड़े विद्वान थे, अच्छे-अच्छे लोग उनके पास जाते थे। पूजा-पाठ, कर्मकांड कराते थे, पुजारी थे। नामदान लिया तो भजन करने लगे। तो किसी ने पूछा यह क्या करते हो आप? आप वह छोड़कर के इसमें ज्यादा ध्यान देने लग गए। तो या तो यही करो या वही करो। तो बोले वह मैं अपने शरीर के पालन, पेट के लिए करता हूं। हमारे बच्चे जो हमसे जुड़े हुए हैं परवरिश के लिए, उनकी परवरिश के लिए काम करते हैं। और अपनी आत्मा के लिए यह काम करते हैं। अब हमको रास्ता मालूम हो गया है की आत्मा की मुक्ति कैसे होगी। ऐसे जब समझ में आ जाता है आदमी को, तो वह लग जाता है।

मनुष्य शरीर किस लिए मिला है?

मनुष्य शरीर को किस काम में लेना है? शहंशाह, बादशाह, कुल मालिक, वह जयगुरुदेव धाम का मालिक, वह सतलोक का मालिक, उसको पाने के काम में लेना है। उसका साक्षात्कार करने के लिए यह मनुष्य शरीर मिला है। इस काम में लेना है। वह अगर मिल जाएगा तो समझो सारी चीजें मिल जाएगी। एके साधे सब सधे, सब साधे सब जाए। एक को अगर साथ लोगे तो सब सध जाएगा। जैसे एक-एक दाल पर नहीं बल्कि दाल की भगोनी में ही नमक डालते हैं, ऐसे ही आसानी से सब काम हो जाता है।

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