लखनऊ: वक्त के कामिल मुर्शिद आला फकीर सभी जीवों के निजात का रास्ता बताने वाले इस धरा पर मौजूद एकमात्र नाम दान देने के अधिकारी वक्त के पूरे सन्त सतगुरु पूज्य बाबा उमाकांत महाराज ने यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेम पर प्रसारित संदेश में बताया कि जगह जगह पर जितने भी सन्त आए सब लोगों ने जीवों को इकट्ठा किया, समझाया कि दुनिया की जितनी भी चीजें जिनको आप अपना कहते हो यह आपकी कुछ है ही नहीं। इसको सबको छोड़ करके जाना पड़ेगा। आप अपने देश, अपने घर चलो जहां पर सुख शांति है, जहां रोना-धोना, दुख-संताप, इतनी गर्मी-तपन नहीं है, वहां चलो तो यह याद दिलाते हैं। जब घर याद आ जाता है, उसके लिए जब तड़प पैदा होती है तब रास्ता बता देते हैं।

सन्त पहले हुजरे को साफ कराते, बुरे कर्म कटवाते हैं फिर अनमोल चीज नामदान देते हैं

वो बर्तन को पहले साफ करते हैं। बर्तन को पहले साफ करके दूध रखते हैं ताकि खराब न हो जाए ऐसे ही पहले हुजडरे को साफ करते हैं। खुद करते भी हैं और करवाते भी हैं। कर्मों को कटवाते भी हैं। जब कर्म कटते हैं, सफाई होती है तभी पूजा-उपासना कबूल होती है।

इतने जप-तप, पूजा-पाठ, अनुष्ठान होने के बावजूद भी देवता खुश क्यों नहीं होते

देखो तमाम जप, तप, यज्ञ, अनुष्ठान लोग कर रहे हैं लेकिन देवता खुश होते हैं? न समय पर जाड़ा गर्मी बरसात होती है। शांति लोगों को नहीं मिल रही, बीमारी, लड़ाई-झगड़ा, वैमनस्यता, मानसिक अशांति घर-घर में व्याप्त है। कहने का मतलब पूजा इबादत कबूल नहीं होता है।

ग्रंथ में जो चीजे लिखी है उसको पढ़ने से पार नहीं हो सकते, उसको धारण करो यानी जैसा गुरु ने बताया वैसा करो

ग्रन्थ का जो पाठ करते हैं, उसमें जो चीजें लिखी हुई हैं, उन्होंने कहा यह तुम्हारा गुरु है; गुरु का मतलब पढ़ लो- इससे नहीं पार होने का। इसमें जैसा लिखा है उसको धारण करो यानी जैसा गुरु ने बताया वैसा करो। तो वैसा जब हो नहीं पाता है तो वह लक्ष्य उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो पाती है जिस लिए मनुष्य शरीर मिला।

खुदा कैसे खुश होगा

सन्त फ़क़ीर सबसे पहले इसको पाक-साफ करते हैं। कहा गया कि ख्वाहिशों, जिस्मानी इबादत से खुदा खुश नहीं हो सकता है। रूहानी इबादत करनी चाहिए। रूहानी इबादत, आध्यात्मिक पूजा, आध्यात्मिक उपासना तभी हो सकती है जब यह मानव मंदिर स्वच्छ, साफ रहे। इसीलिए कहा गया इसके अंदर मांस मछली अंडे शराब जैसी चीजों को मत डालो, इसको गंदा मत करो। तो पहले इसको साफ कराते हैं। बगैर इसके साफ किए हुए नहीं। कहा फकीर ने-

अल्लाह-अल्लाह का मजा, मुर्शीद के मयखाने में है।
दोनों आलम की हकीकत, एक पैमाने में है।
ना खुदा मंदिर में देखा, ना खुदा मस्जिद में है।
शेख जीरिंदों से पूछो, दिल के आशियाने में है।।

दिल के आशियाने में है वह लेकिन दिखाई नहीं पड़ता तो कहा-

एक दिल लाखों तमन्ना, उस पर फिर इतनी हाविश।
फिर ठिकाना है कहां, उसको बैठाने के लिए।।

तब उसने कहा जिसको दीनबंधु दीनानाथ गरीब परवर कहा गया वो कैसे मिलेगा? कैसे दिखेगा? कैसे उसका दीदार दर्शन होगा? कैसे उसकी वेद वाणी, आकाशवाणी, खुदाई आवाज सुनाई पड़ेगी? तो कहा कि-

दिल का हुजरा साफ़ कर, जाना के आने के लिए।
ख्याल गैरों का हटा, उसको बैठाने के लिए।।

यह हुजरा साफ होना बहुत जरूरी है। तो सतगुरु तो सबसे पहले हुजरा ही साफ कराते हैं। इस (मनुष्य शरीर रूपी) मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरुद्वारा को साफ कर लो कि जहां से बैठ कर के तुम पढ़ो उनके वाक्यों को पढ़ो ताकि वो उस आवाज को सुन ले, तुम्हारे ऊपर दया कर दे। तो पहले उसको साफ कराते हैं, उसके बाद देते हैं। क्या देते हैं? अनमोल चीज जिसकी कोई कीमत नहीं लगा सकता, नाम धन, नाम रूपी रत्न जिसको कहा गया, उस नाम की बख्शीश करते हैं, उस नाम को दान में देते हैं, नाम दान देते हैं।

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