लखनऊ: उत्तर प्रदेश में मुसलमानों के समाजवादी पार्टी और खासकर इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से नाराजगी की बातें आम हो चुकी हैं। पार्टी के कई मुस्लिम नेताओं ने अपनी भावनाएं खुलकर जाहिर भी की हैं। सपा की इस मुश्किल घड़ी में बहुजन समाज पार्टी को अपने लिए बड़ी उम्मीद दिख रही है। पार्टी के पास फिलहाल यूपी की राजनीति ने में खोने के लिए ज्यादा कुछ नहीं बचा है। उसे लगता है कि अगर वह अपने पुरानी रणनीति पर ही फिर से काम करे तो 2024 के लोकसभा चुनाव तक वह भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभर सकती है।

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हाल के दिनों में मायावती ने कई ऐसे फैसले लिए हैं, जिससे यही संकेत मिल रहा है कि पार्टी ने गंभीरता से अपनी पुरानी गलतियों को सुधारने की कोशिशें शुरू कर दी हैं और आने वाले दिनों में इसमें काफी कुछ बदलाव देखने को मिल सकता है। बसपा ने नई रणनीति पर काम शुरू किया 2007 में बसपा ने यूपी में 30 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल किया था और यूपी विधानसभा की 403 में से 206 सीटें जीतकर पार्टी सुप्रीमो मायावती पूर्ण बहुमत के साथ मुख्यमंत्री बनी थीं। तब मायावती ने दलित-मुस्लिम वोट को अपने साथ किया था और काफी तादाद में ब्राह्मणों ने भी उन्हें समर्थन दिया था।

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