लखनऊ: इस समय के जीवित पूरे समरथ सन्त उमाकांत जी महाराज ने उज्जैन आश्रम में बताया कि साधना में जो भी अंदर में देखो-सुनो उसे किसी को बताना मत। बता दोगे तो बंद हो जाएगी दया मिलना फिर अंदर तड़प पैदा होगी। जैसे मीरा तड़पती थी, रात दिना मोहे नींद न आवे, भावे अन्न न पानी रे। कहती थी कोई भी वैद्य मिल जाए जो युक्ति रास्ता बता दे, हमारी तकलीफ को दूर कर दे (प्रभु गुरु की) दया हमारे ऊपर उतरने लग जाए, जैसे पहले (अंतर में) रस, आवाज सुनने को मिलती थी, जिस तरह से दया पहले हो रही थी, अब नहीं मिल रही है, अब वह दया फिर से मिलनी शुरू हो जाए।

ऐसे ही अगर बता दोगे तो परेशानी आएगी, तड़प पैदा होगी। तो बताना मत। आगे बढ़ते जाओ। बीच में जब बाधा आती है, गुरु को याद किया जाता है, गुरु मदद करते हैं और बाधाएं हट जाया करती है। किसी को बताना मत। तो जो भी दिखाई पड़े, और यह पांच नाम, पांच रूप, पांच स्थान, पांच की आवाज जो मैं आपको (तत्कालीन सतसंग में) बता रहा हूं, इसको किसी को मत बताना। बस अपने मार्ग पर आगे बढ़ते रहिये।

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