धर्म कर्म: निजधामवासी वक्त के महापुरुष विश्व के मसीहा बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु मुर्शिद-ए-कामिल, स्पिरिचुअल मास्टर, परम दयालु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने प्रात: उज्जैन आश्रम (म.प्र.) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि 23 मार्च को मुक्ति दिवस मनाया जायेगा। सुबह 6 से 8 के बीच अपने-अपने घरों पर सफेद कपड़े पर लाल रंग से लिखा हुआ जयगुरुदेव नाम का झंड़ा फहरायेंगे फिर अपना ध्यान भजन सुमिरन सतसंग यह सब करेंगे, दोपहर में भोजन कर लेंगे।

मुक्ति दिवस क्यों मनाते हैं

जब से गुरु महाराज जेल से बाहर आए थे तब से यह नियम से मनाया जा रहा है। एक समय ऐसा आया की जब तानाशाह सरकार ने गुरु महाराज को जेल में बंद कर दिया था। गलती उनकी थी कि वह भविष्य की बातों को बताया करते थे। जो भी बात बता कर के गए, एक-एक बात सत्य हो गई। लेकिन उस समय उन लोगों की आंखों पर पर्दा पड़ा हुआ था। मनुष्य शरीर में रहने वाले वक्त के महापुरुष विश्व के मसीहा बाबा जयगुरुदेव जी महाराज यानी अपने गुरु महाराज को वो लोग समझ नहीं पाए। जैसे अन्य महात्माओं, भक्तों के साथ लोगों ने, राजाओं बादशाहों ने किया, उसी तरह से गुरु महाराज के साथ उन लोगों ने सुलूक किया और जेल में बंद कर दिया। 23 मार्च को गुरु महाराज जेल से बाहर निकले थे तो अपने लोग उसको मुक्ति दिवस के रुप में मनाते हैं, उसका नाम मुक्ति दिवस रख दिया गया।

कर्म नहीं कटेंगे तो मुक्ति हो पाना मुश्किल

अपनी जीवात्मा की मुक्ति तो सब चाहेंगे लेकिन साथ ही दूसरे के भी हो जाए। तो जो यह कर्म आ जाते हैं, कुछ पिछले जन्मों के, कुछ इस जन्म में जान-अनजान में, माहौल खराब होने के कारण, कलयुग का असर होने के कारण, शरीर के अंगों से बन गए। तो इन कर्मों की भी मुक्ति हो जाए, कट जाएं। क्योंकि अगर कर्म नहीं कटेंगे तो मुक्ति हो पाना बड़ा मुश्किल हो जाता है। यही आड़े आ जाते हैं और गुरु से, गुरु के वचनों से, गुरु के सतसंग से मुख मुड़वा देते हैं। उधर से, गुरु भक्ति से आदमी का ध्यान हट जाता है। इसलिए जो बुरे कर्म है, फंसाने वाले कुछ अच्छे कर्म भी हैं, इनको नष्ट करना जरूरी है, इनकी भी मुक्ति दिलाना जरूरी है।

admin

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *