धर्म-कर्म: संचित, क्रियामान आदि समस्त कर्मों को धोने काटने का आदि काल से चले आ रहे उपाय नामदान देने के एक मात्र अधिकारी, जिन पर विश्वास करके ही अब जीव भवसागर से पार हो सकता है, ऐसे पूरे जानकार समरथ सन्त सतगुरु, परम दयालु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी ने अपने संदेश में बताया कि यदि आप शरीर से सही अच्छे कर्म करते हो, गुरु के पास भी जाते हो, गुरु के आदेश का पालन भी करते हो लेकिन सुमिरन ध्यान भजन नहीं करते हो, नाम की कमाई नहीं करते हो तो फिर पिछले जन्मों के कर्म (संचित कर्म), अभी करने वाले (क्रियामान कर्म) धुलेंगे नहीं। अब नहीं करोगे तो कर्म जमा नहीं होंगे लेकिन जो पहले का जमा है वह नहीं धुलेगा, नहीं साफ होगा। तो गंदगी तो रहेगी। कैसे निकलेगी? उसके लिए जरूरत होती है- गुरु बिन मैलो मन को धोए। उसके लिए समरथ जानकार गुरु की जरूरत होती है। तो आप लोग भाग्यशाली हो जिनको गुरु महाराज जैसे समरथ गुरु मिले। गुरु की दया, गुरु को खुश रखने की जरूरत है। जब उनके आदेश का पालन करोगे तब गुरु खुश होंगे। नाम की कमाई करो। उसी से काम होगा।
सतसंग में सब बताया समझाया गया है:-
महाराज जी ने बताया कि पिछले दिनों में सत्संग सुनाया जाता रहा है। लोक-परलोक की कोई भी जरुरी बात ऐसी नहीं है जिसे न बताया गया हो। अब उन वचनों को जो लोग सुने हो, सत्संग में आते-जाते रहे हो, जो नए लोग आए हैं उनको भी सुनाओ। गुरु का जब ध्यान करोगे तो बात याद आ जाएगी। तो उस समय आप सुनाने लग जाओगे। कोई जरूरी नहीं है कि मंच लगाओ, लाउड स्पीकर लगाओ, आदमी को इकट्ठा करो फिर सुनाओ। जहां कहीं पर भी लोग बैठे हुए हैं, वहीं परिचय किया, वहीं सुनाने लग गए। लेकिन एक प्रांत से दूसरे प्रांत में, एक जिले से दूसरे जिले में नहीं। कुछ लोग इस तरह की टीम आप जिम्मेदार लोग बना लो कि जो यह काम करें। जैसे आपके यहां वक्ता है, आप जो बुद्धिजीवी, अनुभव वाले लोग हो, आप उनको बताओ। कैसे आप गुरु महाराज से जुड़े, जुड़ने के बाद कैसे क्या आपके जीवन में परिवर्तन आया, ये ही बता दो।