जीवन शैली: किसी भी व्यक्ति के लिए शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों ही बहुत जरूरी हैं। अगर कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से स्वस्थ है लेकिन उसका मानसिक स्वास्थ्य खराब है तो उसे अपने जीवन में कई प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। मानसिक स्वास्थ्य से एक व्यक्ति को अपनी क्षमताओं का पता चलता है, उसके भीतर आत्मविश्वास आता कि वो जीवन में तनाव से सामना कर सकता है और अपने काम या कार्यों से अपने समुदाय के विकास में योगदान दे सकता है। मानसिक विकार व्यक्ति के स्वास्थ्य-संबंधी व्यवहार, फैसले, नियमित व्यायाम, पर्याप्त नींद, सुरक्षित यौन व्यवहार आदि को प्रभावित करता है और शारीरिक रोगों के खतरे को बढ़ाता है। मानसिक अस्वस्थता के कारण ही व्यक्ति को बेरोजगार, बिखरे हुए परिवार, गरीबी, नशीले पदार्थों का सेवन और संबंधित अपराध का सहभागी बनना पड़ता है। अगर किसी व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य सही रहेगा तो उसका जीवन भी सही रहेगा।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंस (निम्हंस) ने 2016 में देश के 12 राज्यों में एक सर्वेक्षण करवाया था. इसके बाद कई चिंताजनक आंकड़े सामने आए हैं.

आंकड़ों के मुताबिक आबादी का 2.7 फ़ीसदी हिस्सा डिप्रेशन जैसे कॉमन मेंटल डिस्ऑर्डर से ग्रसित है. जबकि 5.2 प्रतिशत आबादी कभी न कभी इस तरह की समस्या से ग्रसित हुई है. इसी सर्वेक्षण से एक अंदाजा ये भी निकाला गया कि भारत के 15 करोड़ लोगों को किसी न किसी मानसिक समस्या की वजह से तत्काल डॉक्टरी मदद की ज़रूरत है. साइंस मेडिकल जर्नल लैनसेट की 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 10 ज़रूरतमंद लोगों में से सिर्फ़ एक व्यक्ति को डॉक्टरी मदद मिलती है. ये आंकड़े बताते हैं कि भारत में मानसिक समस्या से ग्रसित लोगों की संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ रही है. और आने वाले दस सालों में दुनिया भर के मानसिक समस्याओं से ग्रसित लोगों की एक तिहाई संख्या भारतीयों की हो सकती है.

जानकार ये आशंका जताते हैं कि भारत में बड़े स्तर पर बदलाव हो रहे हैं. शहर फैल रहे हैं, आधुनिक सुविधाएं बढ़ रही हैं. बड़ी संख्या में लोगों का गांवों से पलायन हो रहा है. इन सब का असर लोगों के मन मस्तिष्क पर भी पड़ रहा है. लिहाज़ा डिप्रेशन जैसी समस्या धीरे- धीरे करके बढ़ रही हैं.

दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ़ ह्यूमन बिहेवियर एंड एलाइड साइंसेज़ (इब्हास) के निदेशक डॉक्टर निमीश देसाई का कहना है, “भारत में परिवारों का टूटना और टेक्नॉलॉजी जैसे मुद्दे लोगों को डिप्रेशन की ओर धकेल रहे हैं क्योंकि समाज पाश्चात्यकरण की ओर बड़ी ही तेजी से बढ़ रहा है. आज का समय सोशल टेक्नोलॉजिकल डेवलपमेंट का है. पर यहां सवाल ये उठता है कि क्या गुड डेवलपमेंट ज़रूरी है या गुड मेंटल हेल्थ ज़रूरी है?” डॉक्टरों की माने तो, लोगों में अब मेंटल हेल्थ की अहमियत की समझ पैदा होने लगी है लेकिन वे यह भी मानते हैं कि समाज का एक तबका इस पर खुल कर बातें करना पसंद नहीं करता और इसे एक टैबू के तौर पर लेता है.

2015 में हिंदी फ़िल्मों की अभिनेत्री दीपिका पादुकोण ने एक न्यूज़ चैनल के इंटरव्यू में बताया था कि वे डिप्रेशन की शिकार हुई थीं. उन्हें अभिनय के लिए काफी प्रशंसा मिल रही थी, अवार्ड्स मिल रहे थे लेकिन एक सुबह उन्हें लगा कि उनका जीवन दिशाहीन है, वे लो फील करती थीं और बात-बात पर रो पड़ती थीं. विश्व स्वास्थ्य संगठन या डब्ल्यूएचओ के अनुसार दुनिया भर में 10 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं, और बच्चा पैदा करने के बाद 13 प्रतिशत महिलाएं डिप्रेशन से गुजरी हैं. वहीं, विकासशील देशों में आंकडा ऊपर हैं जिसमें 15.6 गर्भवती और 19.8 प्रतिशत डिलीवरी के बाद डिप्रेशन से गुजर चुकी है.

बच्चे भी डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं. भारत में 0.3 से लेकर 1.2 फीसदी बच्चे डिप्रेशन में घिर रहे हैं और अगर इन्हें समय रहते डॉक्टरी मदद नहीं मिली तो सेहत और मानसिक स्वास्थ्य संबधी जटिलताए बढ़ सकती हैं. दिल्ली स्थित भारतीय अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में मनोचिकित्सा विभाग में डॉक्टर नंद कुमार का कहना है कि 10 साल पहले मनोचिकित्सक ओपीडी में 100 मरीज आते थे लेकिन अब रोज़ 300-400 लोग आते है.

(भारत में मानसिक सेहत एक ऐसा विषय है जिस पर खुलकर बात नहीं होती. )

डब्लूएचओ के मुताबिक हर 40 सेकंड में एक व्यक्ति आत्महत्या करता है, इसका मतलब ये हुआ कि एक साल में 8,00,000 लोग आत्महत्या करते हैं. संस्था के मुताबिक 15 -29 उम्र वर्ग के युवाओं में आत्महत्या मौत का दूसरा बड़ा कारण है. गौर करने वाली बात ये है कि यह विकसित देशों की समस्या नहीं है बल्कि करीब 80 फ़ीसदी आत्महत्याएं निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होती है.

थे रेपिस्ट दिव्या रॉबिन के अनुसार मानसिक समस्या की स्थिति गुजर रहे व्यक्ति को अधिक समझने और देख भाल की जरूरत है. इनका कहना है की, मानसिक समस्या या एनजाइटी एसी चीज है जिसे जब तक खुद से बताया ना जाए उसे समझा नहीं जा सकता है. आप पता नहीं लगा सकते की सामने वाला व्यक्ति नर्वस है या उसे पैनिक अटैक आया है. इसलिए अगर आपके घर या अपके जानने कोई एसा व्यक्ति है जिसे मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी किसी भी तरह की समस्या है तो उसेसे प्रेम और धैर्य के साथ बात करें , उसे समझने की कोशिश करें. उसे वो करने दें जो वो करना चाहते हैं. पर इस बात का भी ध्यान रखें की वो खुद को किसी भी तरह का नुक्सान ना पहुंचाने पाएं.

लेखिका: कीर्ती गुप्ता

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