धर्म-कर्म: निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, दीनता से मांगने पर देने में देर न करने वाले, असीमित भंडार वाले, गुरु से लेने मांगने का सही तरीका सिखाने वाले, अंतर साधना में मदद करने वाले, इस समय के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, परम दयालु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी महाराज ने बताया कि गुरु से कोई चीज जब दीनता से मांगा जाता है तब गुरु देने में देर नहीं करते हैं। और जो समरथ गुरु होते हैं, वह तो भंडार होते हैं। जरूरत पर सब कुछ देते हैं। आप जो पुराने लोग हो, कुछ बात का आपको अनुभव तजुर्बा है। जरूरत पर आपका सब काम हुआ होगा। अगर आपके अंदर भाव भक्ति रही होगी, गुरु से प्रेम रहा होगा, गुरु के वचनों को भूले नहीं होंगे, गुरु को याद करते रहे होंगे, गुरु को मस्तक पर सवार रखे होंगे तो आपके काम में रूकावट आते-आते भी वह समस्या सुलझ गई होगी। गुरु देते हैं लेकिन इतना भी नहीं देते कि आप गुरु को ही भूल जाओ।

जब विश्वास के साथ किया जाता है, तो सब कुछ दिखाई पड़ता है:-

महाराज जी ने बताया कि कोई भी बढ़िया से बढ़िया दवा हो लेकिन उसका उपयोग ठीक से अगर न किया जाए तो उसका परिणाम कुछ नहीं निकलता है। विश्वास के साथ जब किया जाता है तब तो कुछ (अंतर साधना में) दिखाई पड़ता है। नामदान तो बहुत लोग ले लिए लेकिन किए कितने लोग हैं? बहुत पुराने लोग इस सतसंग में बैठे हुए हैं। राजस्थान में गुरु महाराज ने बहुत मेहनत किया। कई पुराने-पुराने नाम दानी हैं लेकिन पूछ लो काका! सुमिरन कैसे करते हो तो ठीक से नहीं बता पाएंगे। प्रेम तो है गुरु से, भाव भक्ति तो है गुरु के प्रति। भाव भक्ति जिनके अंदर नहीं रह गई वह तो अलग हो गए, दुनियादारी में चले गए और दुनिया में ही फंस करके, कीचड़ गंदगी में ही फंस करके, दूसरे के कूड़े को सिर पर रख कर के और इस दुनिया से चले गए। लेकिन जिनमें भाव भक्ति रही, वह अब भी इसमें मिल जाएंगे। तो नामदान लेकर किया नहीं, विश्वास नहीं जमा। विश्वास जमाने की जरुरत होती है। विश्वास होने पर आदमी करने लगता है।

 

admin

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *