धर्म-कर्म : समाज की कुरीतियों को दूर करने वाले भारत के महान समाज सुधारक, सब बात सरलता से समझा देने वाले, सतयुग आगमन की घोषणा करने वाले, ध्वन्यात्मक पांच नाम बताने वाले, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी महाराज ने बताया कि टेकी किसको कहते हैं? बाप जिसकी पूजा करते रहे, उन्हीं की पूजा हमको करनी है। हमारे खानदान के लोग जो देवी के सामने बकरा चढ़ाते थे तो हमको भी बकरा चढ़ाना है। हमको भी वही करना है। इसको कहते हैं टेक। एक औरत बिल्ली पाले हुए थे। बिल्ली बार-बार दौड़ करके उसके पास आ जाती थी। कहते हैं बिल्ली रास्ता काटती है तो अशुभ होता है। इन जानवरों को आगे की जानकारी हो जाती है।

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सांप बिल्ली अगर रास्ता काट दे तो रुक जाना चाहिए। कौवा सुबह दरवाजे पर आकर बैठ करके कांव-कांव करके बता करके चला जाता है कि आज आपके यहां मेहमान आएंगे। अभी गांव में कौवा सुबह कांव-कांव बोलता है तो औरतें समझ जाती है कि कोई मेहमान आयेगा, दूध, घी, साग-सब्जी बचा करके रखती है, पता नहीं कब आ जाए, तो अंदाजा हो जाता है। जब किसी के बीमारी है और मरने का समय आता है तो वो पक्षी सुबह-सुबह बोलता है तब लोग समझ आते हैं कि अब ये बचेगा नहीं। ऐसे ही इनको (जानवरों को) जानकारी हो जाती है। जब उसके यहां शादी तय हुई। तो बार-बार बिल्ली आ जाए। तब उसने क्या किया? जब भी शादी में कुछ भी शुभ काम करने को हो, तब बिल्ली को डलिया से ढक दें। कार्य समाप्ति पर डलिया हटा दे और फिर बिल्ली घूमने लग जाए।

टेकी नहीं बनना चाहिए: महाराज जी
तो (कालान्तर में) बिल्ली भी मर गई, सास भी मर गई। अब पोते की शादी का समय आया, शुभ काम करने को हुआ तब पुत्रवधू बोली, बिल्ली ढको। पूछे क्यों? बोली सासू मां शुभ काम के समय करती थी तो करो। बिल्ली तो मिली नहीं तो बोली शादी भी नहीं हो सकती। तो विद्वानों से पूछा। जब पॉवर को अपने हाथ में ले लेते हैं तब देश को बनाने और बिगाड़ने वाले यही विद्वान पंडित मुल्ला पुजारी। जब न जानकारी होते हुए भी अपना स्वार्थ सिद्ध करने लग जाते हैं तब धर्म मानवता खत्म हो जाती है। और जब ये अपना फर्ज काम करते हैं, लोगों को (सही चीज) बताने लगते हैं तब देश बन जाता है, लोगों की भौतिक व आध्यात्मिक तरक्की हो जाती है। तो विद्वानों के पास गए। उन्होंने सोचा शादी नहीं तो दक्षिणा नहीं मिलेगी। तो कहा चांदी की बिल्ली बना लो, उसे ढक दो फिर उसे दान दे देना। चित भी अपनी पट्ट भी अपनी। तो लोग टेकी बन जाते हैं। टेकी नहीं बनना चाहिए।

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