धर्म कर्म: बाबा जयगुरुदेव आश्रम, उज्जैन में आगामी दीपवाली कार्यक्रम में जीते जी देवी-देवताओं के दर्शन करने, मुक्ति-मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग नामदान, स्वास्थ्य परिस्तिथि अनुकूल रहने पर देने वाले, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने उज्जैन (म.प्र.) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि जिनको अनुभव है, जो लगातार बैठते हो, सतसंग सुनते हो, मन सतसंग में लग जाता है, सतसंग के वचन जब सुनते हैं, चोट मन पर पड़ती है, मन रुकने लगता है। तब भजन में मन लगता है, भजन करते हैं और भजन में तरक्की हो जाती है। तो जो लोग भजन में तरक्की किए हो, जो आवाज को, ध्वनी को पकड़ते हो, जिनका (दिव्य) दृष्टि खुलती है, जिनको कुछ प्रकाश उजाला अंतर में दिखता है, वे लोग अपनी बात को बताओ कि किस तरह से आपने अपने मन को रोका, अपना खाना, सोना, जीवन का रूटीन बनाया।
जीवन की जो शैली, गति है, खाने-पीने, रहने कि, किस तरह से आपने सेट किया, इसके बारे में तो बता ही सकते हो। तो आपको जिनको अनुभव जानकारी है तो वह लोग आप इन बातों को बताओ। केवल पढ़ करके बताने से कहीं न कहीं गलती हो जाती है और कोई न कोई उस गलती को पकड़ लेता है तो उसमें वह बातें थोथी निकल जाती है। कोई विश्वास भले ही कर ले कि बहुत अच्छा साधक है, साधक जान लेने की वजह से सम्मान, इज्जत बढ़ जाता है तो लोग तरह-तरह की फरमाइश करने लगते हैं- कपड़ा ले लो, धन ले लो, सामान ले लो। तो खुश करने की कोशिश करते रहते हैं कि यह साधक है, हमारी मदद कर देंगे, हमारी तरक्की करा देते हैं, हमको यह चीज दे देंगे। तो उसमें (साधक में) अंहकार आ जाता है। तो करा कराया सब गया, जब आया अहंकार। अहंकार में यह चीज खत्म हो जाती है। इसलिए ज्यादा बढ़कर भी नहीं बात करना है। सच्ची और सही बात बतानी है।
गुरु महाराज के सतसंग और उनके जाने के बाद के जो सतसंग सुने, उन्हें बताने लग जाओ
देखो प्रेमीयों, बच्चे और बच्चियों! ज्यादा कुछ न बता पाओ तो जो आप गुरु महाराज के सतसंग में पहले गए हो और गुरु महाराज की जाने के बाद सतसंग में आने लग गए, बड़े-बड़े कार्यक्रम आपने देखा, तमाम काफिले में भी गए तो उन सब बातों को याद करो। भूलते चले जा रहे हो। इनको याद करो और वही बात आप, लोगों को बताने लग जाओ। गुरु का ध्यान करके जब आप बताने लग जाओगे तो जो बात भूली हुई है, वह भी बात याद आ जाएगी। और ज्यादा लोग जहां सप्ताहिक सतसंग में नहीं रहते हैं, वहां लोग सवाल करेंगे, पूछेंगे तो जो बातें आप भूले हुये हो तो आप जब गुरु का ध्यान करोगे तो वह बातें याद आ जाएगी तब आप उनको बता दोगे तो सब खुश हो जाएंगे। और जब संतुष्ट, खुश हो जाएंगे तो जो विश्वास नहीं करते हैं, वह भी आपकी बातों पर विश्वास करने लगेंगे। वह सोचेंगे, देखो हमारे मन में यह शंका थी, हम यह नहीं समझ पा रहे थे और देखो इन्होंने हमको समझा दिया। अब यह कह रहे हैं, चलो वहा बड़ा सतसंग है, ज्यादा लोग आते हैं, अच्छी बातें बताई जाती है, शहर या कस्बे में या उज्जैन में या बावल (जिला रेवाड़ी) में होता है, या कहीं भी होता है, जहां भी सतसंग बड़े-बड़े आश्रम में जगह-जगह पर होते हैं, वहां भी वह जाने लगेगा। जब उसको यह विश्वास हो जाएगा की अच्छी बात सुनने को मिलेगी, अच्छा ज्ञान मिलेगा,अच्छी बात जब हम अपना लेंगे तो हमारा हर तरह से फायदा होगा तो इस बात को वो समझ जायेगा फिर बराबर आने जाने लगेगा। और सतसंग की थोड़ी भी बात, एक-दो बात भी याद कर लेगा तो समझो उसकी जान बच जाएगी।