धर्म कर्म: इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने शाम दुर्ग (छत्तीसगढ़) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि सुबह-शाम एक घंटा आपको साधना में बैठना है। यदि आप बैठे नहीं, शरीर को रोका नहीं तो मन फिर साथ नहीं दे सकता है क्योंकि मन तो इसी शरीर में है और मन का घाट इसी शरीर के अंदर है। शरीर और मन का उसी तरह का रिश्ता है जैसे एक सिक्के के दो पहलू। दोनों का साथ देना जरूरी है। मालिक ने शरीर दिया कि इसको गंदा मत (नशा, मांसाहार आदि मत) करना और अपना असला काम कर लो। रास्ता मिलने पर भी जीवात्मा का कल्याण क्यों नहीं हो पा रहा है? क्योंकि यह शरीर जरूरत से ज्यादा सुख का आदि हो गया है। माहौल वातावरण के हिसाब से शरीर को सुख मिला। लेकिन सुख का आदी होते हुए भी जब आदमी सुख का त्याग कर देता है और इस चीज को समझ जाता है कि शरीर से ज्यादा सुख आत्मा का सुख होता है और उसमें ज्यादा सुख का अनुभव होता है, उसमें तो ऐसा सुख मिलता है कि शरीर का सुख तीखा लगने लगता है, जब इस चीज का ज्ञान होने लगता है तब आदमी उसी आत्मा के सुख की तलाश में, प्राप्ति में रहता है। और उस सुख को प्राप्त करने के बाद उसी में लीन रहता है। तो प्रेमीयों समझो, शरीर के सुख को भूलना पड़ता है। मन को मारो, तन को जारो, इंद्रिय सुख भोग बिसारो। मन को मारना पड़ता है, तन को कष्ट देना पड़ता है और इंद्रियों के सुख को भुलाना पड़ता है (तब वो बड़ी चीज मिलती है)।
किसके अंदर दया भाव नहीं होता है
महाराज जी ने सायं सीकर (राजस्थान) में बताया कि भारत के किए हुए आध्यात्मिक विज्ञान को जब विदेशों में लोग ले गए तो वहां पर तरक्की किए। लेकिन मांसाहारी होने के कारण वह तरक्की उनकी विकास की बजाय विनाश में बदल रही है। जो मांस खाता है, उसके अंदर दया भाव नहीं रहता है। और जिसके अंदर दया नहीं रहती है उसके अंदर दिल दिमाग बुद्धि विनाशकारी होती है। हिंसक पशुओं में दया नहीं होती है। उनका मांस जब मनुष्य खाता है तो उसी तरह की प्रवृत्ति हो जाती है।
अकेले आदमी की करनी का नया उदाहरण पेश करो
महाराज जी ने उज्जैन आश्रम में बताया कि अपने देश के जो जिम्मेदार लोग हैं, देश को आगे बढ़ाने में, इसकी छवि को पूरे विश्व में फैलाने में लगे हुए हैं, ऐसे आप भी लग जाओ। अकेला आदमी क्या कर सकता है? मान लो देश का प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री या जिला कलेक्टर हो, यह लोग बेचारे अकेले क्या कर सकते हैं? इसलिए इनको सबके सहयोग की जरूरत होती है। तो आप सब लोग की जिम्मेदारी यह बनती है, जो भी सतसंगी हो, बाबा जयगुरुदेव जी को मानने वाले जितने भी लोग हो, बाबा जयगुरुदेव संगत से जुड़े हुए हो, सबसे पहले एक नया उदाहरण आप पेश करो। आप अपने रहन-सहन को इस तरह का बनाओ, जिससे आपका भी नाम-काम हो जाए और देश का भी नाम हो जाए। उनको कौन तनख्वाह देता है? जनता देती है। तो जनता का काम करो। नीयत को क्यों खराब करते हो? आए दिन यह बात आती है कि रिश्वत ले रहा था। हजार, दो, पांच हजार ले रहा, पकड़ा गया। इतनी लोगों की नीयत खराब हो गई है। नीयत क्यों खराब हुई? इसीलिए कि शाम को (शराब की) बोतल, मीट, अंडा का नाश्ता कहां से आएगा? इसलिए कहते हैं शाकाहारी हो जाओ। शराब पीना बंद कर दो तो खर्चा कम हो जाएगा। अठन्नी की आमदनी है तो खर्चे के लिए एक रुपैया कहां से आएगा? तो लत तो लग गई विदेशी (शराब) पीने की। अब यह नहीं मालूम कि नौकरी चली जाएगी। इस साल में बहुत से लोगों की नौकरी जाएगी।
इसीलिए आप लोग होशियार हो जाओ। बहुत सजग रहो। मिलावट मत करना। उसमें बरकत नहीं मिलेगी बल्कि नुकसान होगा। उसको कौन खाएगा, कहां जाएगा, अस्पताल में भी जाओगे, कहीं केस में फंस गए तो शुरुआत नीचे से हो जाएगी और ऊंची कुर्सी तक जाएगी। उसी में सारा खर्च हो जाएगा, औरत का जेवर भी बिक जाएगा, सब जमीन चली जाएगा। दुकान भी बंद हो जाएगी। जिस मिलावट करके, कमा करके, जिस नाम को आगे बढ़ना चाहते हो वह नाम भी खत्म हो जाएगा। तो मिलावट खोर, नकली चीजों को बनाने वाले भी अबकी बार इसमें पकड़े जाएंगे। इसलिए बहुत होशियार रहना। आए दिन शिकंजा कसेंगे यह लोग। क्योंकि उपदेश खाली नहीं जाता है। मानवता हर कोई चाहता है। जो मिलावट करता है, मान लो धनिया में बुरादा, काली मिर्च में पपीते का बीज, हल्दी में गेरू मिलाने वाला जब दूध खरीदने जाएगा तब यूरिया वाला दूध खरीद के लाएगा। फिर दवा खरीद के लाएगा। दवा में मिलावट की वजह से दो की बजाय दस गोली दवा खाएगा फिर भी फायदा नहीं होगा। लीवर की दवा खाया तो पता चला किडनी खराब हो गई तो नुकसान तो है ही। इसलिए कहते हैं खुद सुधरो तो सब सुधर जायेंगे। इसलिए शुरुआत पहले अपने से करो, फिर आप कहने के हकदार रहोगे। आपके दामन में अगर दाग लगा रहेगा तो आप दूसरे को कैसे कह सकते हो कि तुम साफ सुथरा रहो। अपने दामन को साफ रखो। इसलिए आपको सजग रहने की जरूरत है।
उलझने का अब समय नहीं है
कोई भी समस्या हो, अगर सुलझाने लायक हो तो उसे सुलझा लो। और नहीं सुलझने लायक है, यानी आज आपने सुलझाया और कल वह अगर फिर उलझने लायक है तो एक ही बार में सुलझा करके खत्म कर दो। चाहे होने लायक है तो ठीक और नहीं होने लायक है तो उधर से ध्यान हटा लो। उसमें फंसे मत रहो। उसमें फंसे रहोगे तो रगड़ा रोज का रोज लगा रहेगा। कहते हैं झगड़ा अच्छा होता है, रगड़ा अच्छा नहीं होता है। तो उसको वहीं खत्म कर दो। उलझने का समय नहीं है। कोई नहीं मान रहा है तो चल भाई, एक आध जमीन के लिए हमको नहीं लड़ना है। तू ही (हमारा भी) हिस्सा ले ले। जो हमारे प्रारब्ध में होगा, वह हमको मिलेगा। हमको तो ऐसे समरथ गुरु मिले हैं कि यदि हमारे प्रारब्ध में भी नहीं होगा तो भी वह हम को दे देंगे। उस वक्त गुरु पर विश्वास कर लो। लड़ाई-झगड़े में मत पड़ो।