धर्म कर्म; त्रिकालदर्शी वैश्विक दुःखहर्ता सन्त उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि बहुत इतिहास मिलता है। अगर इतिहास के आधार पर देखा जाए तो इनका (काल के जाल से) निकल पाना बड़ा मुश्किल है। काल, औरतों को ऐसा जाल में फंसता, दांव मारता है कि अच्छी-अच्छी साधक औरतें कुरूपी पुरुषों के ऊपर मोहित हो जाती हैं। जिनको समझो कि ये कोई कहेगा नहीं कि इनका इनसे जोड़ा है या इनसे प्रेम हो सकता था, ऐसे भी दांव मार देता हैं। ऐसी काम वासना को जगवा देगा कि उस समय कोई भी मिल जाए तो हविश मिटा ले। इस समय पर ऐसा वातावरण बन गया है। बहुत दांव चल रहा है। इससे निकालना बड़ा कठिन है। जीव निकलेगा कैसे? कब? जाल से तब छूटेगा जब सतगुरु मिलेंगे, जब सतगुरु की शरण गहेगा, जब सतगुरु की भक्ति करेगा। उनके पास हर तरह के दांव होते हैं। जैसे एक आदमी ने कहा, मेरे दुश्मन को खबर कर दो कि हम इतनी लम्बी तलवार बनवा रहें हैं कि यहीं से उनको मार देंगे। अब ये तो खाली खबर भेजता गया और वो तलवार बनवाता चला गया। सोचा जब हमला करेगा तो हम भी हमला कर देंगे, हमारे पास तो बहुत लंबी तलवार हो गई। तो एक दिन छोटा सा चाकू लेकर गया और मार दिया, घायल कर दिया। तब कहा कि देख ये दांव है, अपने पास रखा था। इससे तुझे गिरा दिया।

शब्द पारखी गुरु मन को महीन कर देते हैं

कहावत है- गुरु करे जानकर, पानी पिए छान कर; जब तक गुरु मिले नहीं साँचा, तब तक गुरु करो दस पांचा। जब तक सच्चे गुरु न मिले तब तक गुरु बदलते रहो, दत्तात्रेय ने 24 गुरु किया था। “तज्यो पिता प्रहलाद, विभीषण बंधु, भरत महतारी। बलि गुरु तज्यो, कंज ब्रज-बनितन्हि, भए मुद मंगलकारी” बलि ने गुरु को तज दिया, कृष्ण के प्रेम में और उनके बीच में रोड़ा बनने पर गोपीकाओं ने अपने पति को, प्रहलाद ने अपने पिता को, विभीषण ने अपने भाई को तज दिया ऐसे ही जरूरत पड़ने पर, काम का न हो और अगर वो इस तरह का भ्रम पैदा करता हो तो उसको छोड़ करके दूसरा सच्चा समरथ का हाथ पकड़ लेना चाहिए। अब ये जरूर है कि “गुरु गुरु सब एक है, कोई नाही छोट, शब्द पारखी महीन है बाकी चावल मोठ”। महीन चावल बहुत पसंद आता है, स्वादिष्ट होता है, हजम जल्दी होता है और मोटा चावल देर में हजम होता है, उसे लोग कम खाते हैं, बड़े आदमी नहीं खाते हैं। तो शब्द पारखी गुरु महीन होते हैं वो इस मन को महीन, कमजोर कर देते हैं तो ये जोर नहीं कर पाता है, माया की तरफ से ये हट जाता है, इंद्रियों पर माया का जोर ज्यादा चढ़ता है और मन उधर से जब हट जाता है तो कमजोर हो जाता है फिर यही मन सुरत का साथ देने लगता है।

अगर यही प्रवृत्ति बनी रही तो यह आपस में ही लड़कर खत्म हो जाएंगे

महाराज जी ने उज्जैन में बताया कि अरब देशों से भी दूर तक भारत देश की सीमा थी। ये सब तो बँटवारा करके ये देश बन गया, वो देश बन गया। देश के लिए तमाम लोगों को मारकाट दिया। जिस जमीन के लिए मारे-काटे उसका भी कुछ फायदा नहीं हुआ। उनके खानदान को भी कोई फायदा नहीं हुआ। एक लाख पूत, सवा लाख नाती, ता रावण घर दिया न बाती। जिस दुष्टता की प्रवृति, जिस बुद्धि से रावण ने अपनी सोने की लंका को खत्म कर दिया, वही बुद्धि अब इस समय हो रही है। कहते है कि बहुत पैसे वाले हैं। तेल में पैसा, इसमें पैसा, उसमे पैसा, बड़ा धनी मानी देश है, बहुत तनख्वाह देंगे। भारत के लोग नौकरी करने के लिए भाग कर के जाते हैं। अब उन्ही लोगों की बुद्धि खराब हो रही है और वो सब एक दम से लड़ने के लिए तैयार हो गए। आज के दिन हम ये भी उन लोगों से अपील करेंगे और अगर आप कोई खबर पहुंचा सकते हो तो पहुंचा दो कि अगर यही प्रवृति बनी रह गई तो ये सब के सब आपस में ही लड़ कर के मर जाएंगे, खत्म हो जाएंगे। चाहे कौम की मदद करने में, कौम को बचाने में, चाहे कौम कौमियत के जज्बात में लड़ाई लड़े, या ऐसे लड़ाई लड़े की हम आगे बढ़ जाए। कैसे भी इनकी भावना हो तो ये सब आपस में ही लड़ कर खत्म हो जाएंगे, कुछ दिन के बाद।

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