धर्म-कर्म: निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, वक़्त के पूरे समर्थ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया कि, गुरु महाराज का वार्षिक भंडारा उज्जैन में 2, 3, 4 जून को होने जा रहा है। 3 दिन का कार्यक्रम है। आप सब लोग तैयारी करो, वहां पर आओ। देखो खेत में पानी लगाते (सिंचाई) हो तो जड़ में, कुछ दूर तक तने में पानी जाता है लेकिन जब बरसात होती है तब पत्ता-पत्ता को, तना, जड़ सबमें पानी जाता है। ऐसे ही गुरु की दया बरसती है। ऐसे तो दया रोज हो रही है लेकिन भंडारा कार्यक्रम में दया बरसेगी, लेने के लिए वहां पहुंचो।
ऐसे मौके से चूकना नहीं चाहिए:-
जो लोग आते-जाते रहते हो, आप देखते हो कि (आपको) हर तरह से फायदा हो रहा, लाभ दिख रहा। लाभ नहीं भी दिखाई देता है तो कम से कम मानसिक शांति रहती है। नहीं तो पहले बहुत तकलीफ, टेंशन में रहते थे। बहुत से लोगों को टेंशन कम हो गया, गरीबी, रोग में कमी आई है। हर तरह से फायदा दिख रहा है। तो ऐसे मौके से चूकना नहीं चाहिए।
प्रेमियो! सम्मान के साथ नये-पुरानों को ले आओ:-
तैयारी करो और लोगों को ले चलो। कहीं जब फायदा होने को होता है तो आदमी अपने पड़ोसियों, रिश्तेदारों को भी को भी ले जाता, बुलाता है, चलो वहां पर भोजन, सम्मान मिलेगा, सबके लिए निमंत्रण है कि कोई भी वहां पहुंच जाए। ऐसा करते हो। ऐसे ही दया-दुआ की बरसात होगी। वहां पहुंचना चाहिए। ले चलो वहां पर। जो नये-पुराने लोगों को जो अभी उज्जैन नहीं आए हैं सबको ले आओ। सम्मान इज्जत के साथ अपने साथ ले चलो। सम्मान के साथ उनको ले चलोगे तो चाहे रास्ते में कोई दिक्कत ही पड़े तो भी आदमी महसूस नहीं करता है।
दृष्टांत से समझाई गहरी बात:-
बहुत पहले की बात है जब मैने नामदान लिया था, प्रचार करता था। हमारे गांव में ठाकुर साहब थे जो भगवान को मानते थे, शाकाहारी थे। उनसे बराबर कहा करता था कि (जयगुरुदेव बाबा के सतसंग में) चलना है, कहते कि हां, चलेंगे-चलेंगे। ऐसा संयोग बना की चल पड़े। ठंडी का महीना था। गुरु महाराज (बाबा जयगुरुदेव जी) मंच पर चढ़ गए। हम लोग नीचे खड़े थे। सब लोग दर्शन कर रहे थे। उनकी तरफ भी गुरु महाराज ने देखा। सबको देख रहे थे। तो जब वह देखे तो उछल पड़े। उस समय उन्होंने अपने को संभाल लिया। बाद में जब गुरु महाराज मंच से उतरकर के चले गए तो हमारा पैर छूने लगे, कहा भैया, बहुत बढ़िया काम किया, आपने तो हमको भगवान से ही मिला दिया। आदमी को जब कुछ मिल जाता है, जैसे किसी को कोई नौकरी दिलवा देता है तो कहता है, आप हमारे लिए भगवान हो गए, रोटी-रोजी का सहारा बन गए, परोपकार कर दिया, तब कहते हैं आप तो हमारे भगवान हो। यह सबसे बड़ा परोपकार है।
जीव नर्क और चौरासी से छुटकारा पा जाय यह सबसे बड़ा परोपकार होगा:-
यह जीवात्मा नर्क और चौरासी से छुटकारा पा जाए, अपने घर, अपने मालिक के पास पहुंच जाए, यह सबसे बड़ा परोपकार है। करो तैयारी। अपनी गाड़ी रिज़र्व करा लो, आ जाओ और भंडारे का प्रसाद अपने हाथों से लेकर के खाओ। जो घर की रखवाली के लिए परिवार के लोग रह जाए, उनको भी लाकर के खिलाओ, दया-दुआ ले लो। मौका होता है, समय चूकना नहीं चाहिए।
कुछ लोग थोड़े समय के लिए घराती बन जाओ:-
और कुछ लोग उज्जैन आश्रम व्यवस्था के लिए पहुंच जाओ क्योंकि सब अगर बाराती बनकर पहुंच जाएं, घर आये कोई नहीं रहे तो इज्जत रहेगी? इज्जत नहीं रहती है। इसलिए घराती लोग इंतजाम करते हैं। तब बारात आती है तो रहने-खाने की उनके दिक्कत नहीं होती है। थोड़े समय के लिए कुछ लोग घराती बन जाओ कि हमारे यहां मेहमान आ रहे हैं। उनके पानी, पैखाने, रहने, खाने की कोई दिक्कत न हो।