धर्म कर्म: सन्तों की वाणी को उन्ही के लेवल का जानकार ही सही तरीके से समझा सकता है, तो अंदर की तीसरी आँख खोलने का मार्ग नामदान बताने वाले, कर्मों के लेन-देन को, पाप-पुण्य से जीवात्मा को मुक्त कर मुक्ति-मोक्ष दिलाने वाले, मददगार, इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि बच्चे को सिखाया जाए कि सुबह उठो और अपना (बासी) थूक निकालो, आंखों में लगा लो। खारा होता है, मैल को साफ करता है। अंजन हो, काजल हो, कोई भी चीज ऐसी हो, शहद हो, आंखों में लगाया जाता है तो इससे अंदर से पानी निकलता है तो उसके साथ गंदगी भी धुल जाती है। तो अंदर तक जो गंदगी पहुंच गई हो, अंदर के पानी से साफ हो जाता है। और मुंह में कुल्ला लेकर के और जब बाहर से (आँखों पर पानी) मार देते हैं तो यह आंखें बाहर से साफ़ हो जाती है। इसी प्रकार अंदर की (जीवात्मा की) आंख की भी सफाई करनी पड़ती है। और जब सफाई नहीं होती है, जब ज्यादा जमा हो जाता है तो मोतियाबिंद हो जाता है। तो इसी तरह से जब कई-कई जन्मों के कर्म इकट्ठा हो गये तो जैसे अंदर की आंख में मोतियाबिंद हो गया, पर्दा मोटा हो गया तो दिखता नहीं है। कहा है- घट में है सूझत नहीं, लानत ऐसे जिन्द, स्वामी या संसार को भयो मोतिया बिंद। इस संसार में जो लोग हैं, उनको मोतियाबिंद हो गया, उनकी अंदर की आंख से दिखाई नहीं पड़ता है। और है वो सब कुछ इसी घट में।

अच्छे-बुरे दोनों कर्म खत्म होते हैं तब जीवात्मा अपने घर पहुंच पाती है

क्योंकि अच्छे कर्म जब बन जाते हैं तब जीवात्मा (मनुष्य शरीर से) निकलने के बाद स्वर्ग और बैकुंठ में जाती है। लेकिन उसके आगे नहीं जा सकती है क्योंकि उधर लिंग शरीर, सूक्ष्म शरीर होता है। उनमें मुक्ति-मोक्ष का रास्ता, दरवाजा नहीं है। तो जब तक उसके पुण्य रहते हैं, तब तक वहां कुछ दिन तक रहती है। उसके बाद पुण्य क्षीण होने पर मृत्यु लोक में फिर आना पड़ता है, फिर तकलीफ झेलनी पड़ती है, यहां जन्मना और मरना पड़ जाता है। तो अच्छा कर्म और बुरा कर्म, दोनों जब खत्म होता है- पाप पुण्य जब दोनों नाशे, तब पावे ममपपुर वासे, तब यह जीवात्मा अपने घर अपने मालिक के पास पहुंच पाती है, तब उस प्रभु की गोद में यह बैठ पाती है। नहीं तो जन्मते-मरते रहो, लौट-लौट कर चौरासी में आते रहो, कुत्ता, बिल्ली, कीड़ा, मकोड़ा, कबूतर, तोता, मैना आदि बनते रहो, इसी में आना पड़ जाता है। तो सन्त इस अखाड़े के उस्ताद होते हैं, उनके पास इससे निकलने का उपाय होता है।

समर्थ गुरु बराबर मदद कब करते रहते हैं ?

कर्ता करे न कर सके, गुरु करे सो होए। जब समरथ गुरु मिल जाते हैं तो गुरु पर निर्भर होना चाहिए, गुरु की बातों को पकड़ना चाहिए और उनके बताए रास्ते पर, उनके बातों, निर्देश के अनुसार चलना चाहिए तब तो गुरु बराबर मदद करते रहते हैं। गृहस्थ भी चलती रहती है। घर-गृहस्थी का, बच्चों का, पत्नी का, पति का, सास-ससुर का, माता-पिता का जो भी लेना-देना, कर्म कर्जा जिसको कहा गया, वो भी निकलता, कटता रहता है। वही कर्जा जो ज्यादा कठिनाई से अदा होना होता है, जैसे उसको कोई सरल उपाय बता देता है कि भाई इस तरह से अदा करोगे तो आसानी से अदा हो जाएगा, इसी प्रकार चाहे इस रुपया-पैसा का कर्जा हो चाहे या चाहे कर्मों का कर्जा हो, (सतगुरु के बताये अनुसार करने से) आसानी से अदा हो जाता है।

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