धर्म-कर्म: जीते जी प्रभु से मिलाने वाले, जीवात्मा को अमर सुहागिन बनाने वाले इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया कि करवा चौथ पर विवाहिता महिलाएं एक तरह से तपस्या करती हैं फिर चंद्रमा से अपने अंदर शीतलता के लिए प्रार्थना करती हैं कि हमारे अंदर गर्मी, क्रोध न आवे, सहनशीलता रहे। हमारा शील स्वभाव, संयमित जीवन रहे कि हमारे पति हमसे हमेशा प्रेम करते रहें, साथ न छूटे। ये सिंदूर, श्रृंगार, लाल रंग का कपड़ा ही क्यों पहनती है? यह जितने भी रंग लाल पीला हरा सफेद आदि हैं, सब ऊपरी लोगों के रंग हैं। दूसरे स्थान का जो नामदान में बताया गया, लाल ही बताया गया। जब मीरा ने साधना में शरीर को छोड़ा और दूसरे स्थान पर पहुंची तो देखा कि सब लाल ही लाल है। तब बोली- लाली मेरे लाल की, जित देखूं तित लाल। लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल।। लाल रंग शुभ माना गया है। जैसे मांग में सिंदूर से किसी और की नजर नहीं जाती। ऐसे ही गुरु जिसको जब अपना लेते हैं तो मोहर-ठप्पा लगा देते हैं कि यह हमारा जीव हो गया तो उस पर किसी की नजर नहीं जाती है।

पुरानी पद्धतियों और परंपराओं को छोड़ने से गृहस्थी की गाड़ी डिस्बैलेंस हो रही:-

अशुभ माना जाने पर भी काले रंग के काजल को आंखों में लगाती हैं बच्चियां। क्यों? अगर गलत नजर देखेगा तो तेरा मुंह भी काला हो जाएगा। तो यह जितनी भी चीजें हैं इनका कोई न कोई मतलब है, अर्थ है। इस समय पर पुरानी पद्धति, पुरानी चीजों को छोड़ने से यह गृहस्थी की गाड़ी डिसबैलेंस होने लग गई।

ये महत्व रखने वाले त्योंहार क्या याद दिलाते हैं:- 

जिस पुरुष से ब्याह किया, आपको प्रेम का जीवन बिताना है, एक-दूसरे को खुश रखना है, एक-दूसरे के अंदर कोई कमी आ जाए तो उसको दूर करना है और साथ जिंदगी निभाना है।

सन्तमत बाहरी की बजाय अंतर की चीजों पर ध्यान देता है:-

सन्तमत बाहरी चीजों, रीति-रिवाज, पद्धति जो ज्यादा जरूरी नहीं है उस पर ध्यान नहीं देता है। आप जो सन्तमत से जुड़ी हो, नामदान मिल गया है, आप अंतर के लाल रंग में रंगने की कोशिश करो। जिस को पति परमेश्वर कहा गया, आप अपनी जीवात्मा को उससे जोड़ने की कोशिश करो कि उनके साथी हमेशा रहे, जिसको अपना ले।

अपनी सुरत को ध्यान, भजन, सुमिरन कर के जगा लो:-

भजन, ध्यान और सिमरन आज आपको खूब करना चाहिए और जब तक अगला करवा चौथ न आ जाए तब तक बराबर उस मालिक की सुहागन बनना चाहिए। जितनी जीवात्मा हैं सब स्त्री है। पुरुष कौन है? वही परमेश्वर, परमात्मा, सतपुरूष कहा गया। आप जितने भी नाम दानी पुरुष हो, आप भी अपने सुरत को जगा कर उनसे सगाई कर लो जिससे बराबर संभाल करते रहें। जैसे पति का धर्म होता है, पत्नी को संभालना, दुख-सुख में शामिल रहना, उनको हर तरह से बुराइयों से बचाना। ऐसे ही जब आपका साथ असली पति परमेश्वर, भगवान, परमात्मा से जब हो जाएगा तब आपका शरीर अपवित्र नहीं होगा, बुराइयों से बचा रहेगा। फिर इसको सजा नहीं मिलेगी।

वो असला पति, जब समय पूरा हो जाएगा, तब भी संभाल करेंगे:-

जैसे सुहागन अपने पति से कहती है कि हम जीवन भर आपके साथ रहे और हमारा प्राण भी आपकी गोद में ही निकले। ऐसे ही जीवात्मा, परमात्मा से जुड़ने पर जब समय पूरा होगा तो वो हाजिर-नाजिर रहेंगे और वह इसकी संभाल कर लेंगे। फिर यह नीचे की योनियों में नहीं जाएगी। आज स्त्री-पुरुष दोनों संकल्प बनाओ कि हमारा असला काम हो जाए। जिनको रास्ता नामदान नहीं मिला वो रास्ता ले कर अपने असला काम में लग जाओ।

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