UP: झांसी मेडिकल कॉलेज में हुई आगजनी की घटना ने मेडिकल कॉलेज की सुरक्षा व्यवस्थाओं की पोल खोल दी है। फायर इंस्टीग्यूशर (आग बुझाने वाले सिलेंडर) का समय पर न बदला जाना इस त्रासदी की बड़ी वजह बना है। कुछ सिलेंडर 2 से 3 साल पहले ही एक्सपायर हो चुके थे, और आग लगने पर ये बिल्कुल नाकाम साबित हुए। एक सिलेंडर पर 2019 की फिलिंग डेट और 2020 की एक्सपायरी डेट दर्ज थी, लेकिन इसके बाद भी इसे बदलने की ज़रूरत महसूस नहीं की गई।
उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने बताया कि, फरवरी 2024 में मेडिकल कॉलेज की फायर सेफ्टी का निरीक्षण किया गया था और जून में ट्रायल भी हुआ था। इसके बावजूद एसएनसीयू (नवजात शिशु गहन चिकित्सा कक्ष) में शुक्रवार रात लगी आग में 10 नवजातों की जान चली गई। यह घटना सुरक्षा और प्रशासन की लापरवाही का उदाहरण है।
सुरक्षा अलार्म ने नहीं दी चेतावनी:
जानकारी के अनुसार, एसएनसीयू वार्ड में सुरक्षा अलार्म लगे थे, लेकिन आग लगने पर ये अलार्म काम नहीं कर पाए। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, धुआं फैलने के बाद वहां चीख-पुकार मच गई। अगर समय पर अलार्म बजता, तो बचाव कार्य जल्दी शुरू हो सकता था।
बचाव कार्य में हुई देरी:-
आग तेजी से फैलकर दरवाजे तक पहुंच गई, जिससे भीतर जाना मुश्किल हो गया। दमकलकर्मियों ने खिड़कियों के कांच तोड़कर किसी तरह प्रवेश किया। लेकिन, आग पर काबू पाने और बचाव कार्य शुरू करने में आधा घंटा लग गया। निचले तल पर होने के कारण नवजातों को बाहर निकाला जा सका। यदि यह हादसा ऊपरी मंजिल पर हुआ होता, तो स्थिति और गंभीर हो सकती थी।
पहचान में समस्या और अफरातफरी:-
अधिकांश नवजातों की पहचान के लिए उनके हाथ में मां के नाम की स्लिप या पैर में रिबन बंधा होता है। आगजनी के बाद अफरातफरी में कई स्लिप्स गिर गईं, जिससे बच्चों की पहचान मुश्किल हो गई। कई माता-पिता अपने बच्चों को ढूंढने के लिए बिलखते रहे। कुछ बच्चे बिना पहचान के बाहर निकाले गए, जिन्हें परिजन जैसे-तैसे उठाकर ले गए।