Mulayam Singh Yadav: समाजवादी पार्टी के संस्थापक उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और जननेता मुलायम सिंह यादव 22 नवम्बर 1939 को इटावा के सैफई गांव में पैदा हुए थे।छह दशक से अधिक के अपने राजनीतिक जीवन के दौरान, उन्होंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में तीन कार्यकालों तक सेवा की, और भारत सरकार में केंद्रीय रक्षा मंत्री के रूप में भी कार्य किया।नेता जी ने 10 अक्टूबर 2022 को गुड़गांव के मेदांता हॉस्पिटल में आख़िरी सांस ली। उनके निधन पर देशवासियों ने उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को याद कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी थी गांव के एक पहलवान से निकलकर देश का सर्वमान्य राजनेता बनने तक के सफर में नेताजी को बहुत संघर्ष करना पड़ा था। उनके इन्हीं संघर्षों के कारण देश ने इन्हें धरतीपुत्र तक की संज्ञा दे डाली उनके संपूर्ण जीवन यात्रा पर पत्रकार एवं राजनैतिक कार्यकर्ता शम्स तबरेज़ का विशेष लेख……..
नेता जी यूं बने किसानों और खेतिहर मजदूरों के मसीहा
बात जुलाई 1977 की है जब मुलायम सिंह यादव राम नरेश यादव की नेतृत्व वाली सरकार में सहकारिता और पशुपालन विभाग के बतौर मंत्री के रूप में शपथ ली। आजमगढ़ के निवासी राम नरेश यादव यूं तो लोकसभा के सदस्य थे लेकिन राजनारायण जी की ज़िद के बदौलत बाक़ी उम्मीदवारों को पीछे छोड़ते हुए सूबे के मुख्यमंत्री बन गए। उस समय प्रदेश के किसानों और सहकारी संस्थाओं के हाल बदहाल थे।किसान का बेटा होने की वजह से मुलायम सिंह मेहनतकश किसानों के सुख दुःख से खूब वाक़िफ थे वह अपने किसान भाईयों को किसी तरह से नाख़ुश नहीं देखना चाहते थे। मुलायम सिंह ने बेहद कमज़ोर विभाग हो चुके सहकारिता पशुपालन और ग्रामीण उद्योग जैसे विभाग में जान फूंक दी और शपथ लेते ही सबसे पहले भ्रष्टाचारी और घूसखोर अधिकारियों को दुरुस्त किया। साथ ही उन्होंने क़रीब एक लाख खेतिहर मजदूरों को रोज़गार मुहैया कराने की नियत से छोटे छोटे उद्योगों की 5500 इकाइयां स्थापित करवाईं। उस समय ग्रामीण क्षेत्रों में गोदामों की कोई सुविधा नहीं थी लेकिन मुलायम सिंह यादव जी ने विश्व बैंक की मदद से क़रीब 4500 गोदाम बनवाए खाद बीज दवा की कमी झेलने वाले किसानों को काफ़ी राहत मिली। नेता जी का झुकाव हमेशा किसानों खेतिहर मजदूरों और नौजवानों की ओर रहता था वो रात को सोने से पहले हमेशा किसानों और खेतिहर मजदूरों के लिए फिक्रमंद रहते थे और कभी भी उन्होंने किसानों और खेतिहर मजदूरों का शोषण बर्दाश्त नहीं किया और मरते दम तक किसानों खेतिहर मजदूरों, नौजवानों की वकालत करते रहे।
जब मुलायम सिंह और कांशीराम ने हाथ मिला कर कल्याण सिंह को दी पटखनी
जयंत मल्होत्रा भारत के एक बड़े उद्योगपति थे।उनका प्रयास यह था कि कांशीराम और मुलायम सिंह यादव एक मंच पर साथ आएं। 1990 के में रामजन्मभूमि आंदोलन की वजह से बीजेपी बड़ी मजबूती के साथ सूबे में अपना क़दम जमा चुकी थी और 1991 में कल्याण सिंह की नेतृत्व में भाजपा की सरकार बन चुकी थी।
लेकिन उसी दौरान जब बेक़ाबू भीड़ ने 6 दिसंबर,1992 को बाबरी मस्जिद को गिरा दिया, वो भी तब जब राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर आश्वस्त किया था कि बाबरी मस्जिद को किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं हो सकता।बाद में नतीजा यह सामने आया कि एक ही झटके में उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार गिर गई। नहीं तो केंद्र सरकार उत्तर प्रदेश सरकार को बर्खास्त कर सकती थी इसी को मुद्देनजर रखते हुए कल्याण सिंह ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया।
बाद में सवाल यह भी उठा कि आने वाले कुछ समय बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को दोबारा सत्ता में आने से किस तरह से रोका जाए?
यहाँ पर मशहूर उद्योगपति जयंत मल्होत्रा ने जुलाई 1993 में मुलायम सिंह यादव और कांशीराम के बीच दिल्ली के अशोका होटल के एक कमरे में मुलाक़ात करवाई। मुलाक़ात पूरी तरह से सफ़ल रही। इस सबके बावजूद ‘मुलायम सिंह यादव-कांशीराम गठबंधन’ ने 1993 के विधानसभा चुनाव में ग़ज़ब की सफलता हासिल कर सपा बसपा एलायंस से 176 सीटें हासिल कर कांग्रेस, निर्दलीय विधायकों और अन्य छोटे दलों के सहयोग से सूबे की सियासत पर कब्ज़ा कर सरकार बना ली।
शहनाई की गूंज
यह बात सन् 1954 की है जब नन्हें मुलायम की उम्र महज़ 15 साल थी उनकी शादी के लिए लड़की की खोज शुरू हो गई। नन्हें मुलायम के चाचा बच्चीलाल यादव का मानना यह था कि अब मुलायम की उम्र शादी लायक़ हो गई है वो आसपास के गांवों में रिश्ता तलाशने जुट गए बहरहाल गांव से 18 किलोमीटर दूर रायपुरा में मालती देवी नाम की दुल्हन मिल गई और रिश्ता तय भी हो गया। उसके तीन वर्षों बाद क़रीब एक दर्जन बैलगाड़ियों से बारात निकली दोस्तों, रिश्तेदारों समेत क़रीब 100 लोगों ने बारात में शिरकत कर हिन्दू रीति रिवाज से शादी कर बहुत ही सरल सुलभ और सज्जन स्वाभाव की दुल्हन मालती देवी को अपने घर लाया।
जब मुसलमानों के बेहद क़रीब हुए नेता जी
एक ज़माना यह भी आया जब बाबरी मस्जिद को बचाने की कोशिश में मुलायम सिंह यादव धर्मनिरपेक्षता के लिए रक्षा कवच बन कर खुल कर सामने आए।उस ज़माने में उनके द्वारा कहे गए वाक्य बाबरी मस्जिद पर एक परिंदा भी पर नहीं मार सकेगा इस वाक्य ने उन्हें मुसलमानों के बेहद क़रीब ला दिया और उसी दिन से मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री से अंतराष्ट्रीय ख्याति के नेता बन गए और उनकी दिलेरी ने मुसलमानों के दिलों में गहरी पैठ बना ली। जब 2 नवंबर 1990 को कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद की तरफ बढ़ने की कोशिश की तो उन पर पहले लाठीचार्ज फिर गोलियां चलाई गईं जिसमें एक दर्जन से अधिक कारसेवक मारे गए। तब से बीजेपी के समर्थक नेता जी को मौलाना मुलायम कहने लगे।
आख़िरी सांस तक आज़म ख़ान का निभाया साथ
नेताजी की राजनीति में सबसे लंबा साथ मोहम्मद आज़म ख़ान का रहा है। नेता जी के अच्छे और बुरे दिनों में हमेशा आज़म ख़ान एक मज़बूत दीवार की तरह खड़े रहे।इन दोनों नेताओं के बीच की नजदीकियों का अंदाजा बेहद आसानी से लगाया जा सकता है। नेताजी और आजम खान राजनीति में 1980 से एक साथ जुड़े जब आज़म ख़ान पहली बार रामपुर से लोकदल के विधायक चुने गए थे।
संतानें दो, लेकिन वारिस बने अखिलेश
नेता जी ने दो शादियां की थीं। एक मालती देवी, मालती देवी से उनके पुत्र अखिलेश यादव का जन्म पहली जुलाई 1973 में हुआ। 2003 में मालती देवी की निधन के बाद मुलायम सिंह यादव ने दूसरी पत्नी साधना गुप्ता से विवाह किया। इस शादी के बारे में लोगों को पहली बार तब पता चला जब मुलायम सिंह यादव ने आय से अधिक धन के मामले में सुप्रीम कोर्ट में शपथ पत्र दे कर कहा कि उनकी एक पत्नी और है।
मुलायम सिंह का सियासी सफ़र
मुलायम सिंह यादव 5 दिसम्बर 1989 से 24 जून 1991 तक पहली बार उत्तर प्रदेश सरकार मुख्यमंत्री रहे,5 दिसम्बर 1993 से 3 जून 1995 तक दूसरी बार मुख्यमंत्री बने,29 अगस्त 2003 से 13 मई 2007 तक सूबे के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली और 1 जून 1996 से 19 मार्च 1998 तक रक्षा मंत्रालय की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का निर्वहन किया इसके अलावा नेता जी 10 बार विधायक और 7 बार संसद और एक बात विधान परिषद के सदस्य रहे इसके अलावा सोशलिस्ट पार्टी, लोकदल, जनता दल और समाजवादी पार्टी में रह कर बड़ी जिम्मेदारियां निभाईं।