लखनऊ: इस समय के पूरे महापुरुष, मनुष्य शरीर में मौजूद उज्जैन के त्रिकालदर्शी समरथ संत सतगुरु पूज्य बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 10 दिसम्बर 2021 को देवरिया उ.प्र. में नामदान की बरसात करते हुए बताया कि कृष्ण-राम कथा-चरित्र पढ़ने के साथ-साथ उनका अनुकरण भी करना चाहिए। इसलिए इतिहास बनता है कि पढ़ो और उसके अनुसार चलो।

संतों में केवल दयाल अंग होता है लेकिन अवतारी शक्ति में दयाल और काल अंग दोनों होते हैं। राम ने दया करके पत्थर को नारी बना दिया और जब युद्ध करने को हुआ तो धनुष उठा कर विनाश किया। इन्होंने भी बहुत समझाया लेकिन कौरवों द्वारा नहीं समझने पर सुदर्शन चलाया। उस चक्र को या तो बर्बरीक देखे थे या अर्जुन देखे थे। जब अर्जुन लड़ने से मना किये तो बोले इतने दिन साथ रहे लेकिन अभी तक हमको पहचाना नहीं बैठो ध्यान लगाओ महाभारत दिखाता हूं जब ध्यान में कुछ नहीं दिखा तो दोनों आंखों के बीच जहां तीसरा नेत्र, दिव्य चक्षु है, वहां पर ठोका और कर्मों के पर्दे को अपनी ताकत से हटाया। शिव नेत्र पर मनुष्य के कर्म चोरी, व्यभिचार हत्या लूटपाट झूठ मारकाट इनके कर्म जमा हो जाते हैं। अर्जुन को दिखाया कि सब मरे पड़े हैं, महाभारत तो पहले ही हो गया तब गांडीव उठाया। युद्ध के बाद अहंकार में पांडव बोले मैने मारा तो कृष्ण बोले जिसने पुरा देखा वो बताएगा। बर्बरीक के सिर के पास गए तो बोला कि केवल चक्र सुदर्शन चल रहा था और बाकी सब मुंह फैलाये खड़े थे, किसी का हाथ-पांव भी नहीं हिल रहा था। बोला अब जाने दो तो कृष्ण बोले मेरा भी समय पूरा हो गया, मैं भी जाऊंगा। पांडव बोले हमें भी लेते चलिए। स्पष्ट मना किया कि जीवों को पार करने का काम संतों का होता है। इसलिए उन्होंने भी गुरु बनाया। बाहरी विद्या गुरु संदीपनी और आध्यात्मिक गुरु सुपच बनाया।

कृष्ण मार नहीं सकते थे कौरवों को। उस समय जो सुपच सन्त थे, उनसे प्रार्थना किया कि आप अपनी दया की धार को समेटो नहीं तो पापियों का खात्मा नही हो पाएगा। वक़्त के संत अपनी दया की धार को मनुष्यों की रक्षा के लिए फैलाए रहते हैं। कृष्ण भगवान के साथ रहने वाले पांडवों को नर्क चौरासी में जाना पड़ा आपने तो उनको को देखा भी नहीं।

कृष्ण भगवान जब जाने लगे थे तो पांडव बोले हमको अपने धाम साथ ले चलो। तब कृष्ण ने कहा तुम त्रिकालदर्शी संत की खोज करो, उनसे रास्ता लेकर योग करोगे तब ही तुम मेरे धाम अपने धाम पहुंच सकते हो। 24 घंटा साथ रहने वाले पांडवों को नर्कों में जाना पड़ा। तो आप यह सोचते हैं कि इनकी हम पूजा कर लेंगे, जिनको देखा भी नहीं आदमी ने और मूर्ति बनाकर स्थापित करके मान्यता दे दिया तो आप कैसे पार हो पाएंगे।

स्वयं कृष्ण ने गीता में कहा है कि समर्थ गुरु को खोजो, वोही मुक्ति-मोक्ष दे सकते हैं

आपको अगर विश्वास न हो तो यदि संस्कृत के जानकार हो तो गीता के चौथे स्कंद के चौतीसवें श्लोक में यही लिखा हुआ हैं। जो कृष्ण ने कहा था समरथ गुरु के बगैर ऊपर नहीं जा सकते हो, यही रह जाओगे, तुम्हारी दिव्य दृष्टि नहीं खुल सकती है। धार्मिक ग्रंथ इनको समझने की कोशिश करोगे तब तो आपका काम बनेगा नहीं तो नर्क और चौरासी में चक्कर लगाते रह जाओगे।

admin

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *