लखनऊ। आज के इस तकलीफ-परेशानी के दौर में लोगों को महापुरुषों के सतसंग में जाने, बताये गए आचरण-विचारों को अपनाकर सुख-शांतिपूर्ण जीवन जीने के उपाय बताने वाले इस समय के पूरे सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 19 दिसंबर को हमीरपुर उ.प्र. में दिए गए अपने संदेश में बताया कि आज अगहन की पूर्णिमा है। लोग नदियों में स्नान करने के लिए गए होंगे, तीर्थ स्थानों पर आज मेला लगा होगा। जहां पर कभी संत, महात्मा रहे हैं वहीं पर उनके स्थान बन गए। ज्यादातर नदियों के किनारे हैं, ऋषि मुनि और महात्माओं ने स्थान बनाया था।

संत नदियों के किनारे रहते थे, अमावस्या पूर्णिमा पर लोग स्नान करने जाते तो सतसंग सुनते थे
लोग पहले नदियों में स्नान करने जाते थे और जहां पर योगी योगेश्वर संत रहते थे उनके आश्रम में जाकर के अच्छी-अच्छी बातें सुनते और मानते थे। गृहस्थ आश्रम में कैसे रहा जाए, भाई-भाई, पिता-पुत्र के साथ कैसा व्यवहार करें, पति-पत्नी का फर्ज क्या होता है, यह वहां सीखते और जब घर में आकर के वैसा आचरण करते थे तब यही गृहस्थ आश्रम स्वर्ग जैसा था।

संत महात्माओं के उपदेश को लोगों ने छोड़ा इसलिए तकलीफें झेल रहे हैं
अब देखो घर-घर में बीमारी, लड़ाई-झगड़ा, ईर्ष्या-वैमनस्यता, एक-दूसरे के खून के प्यासे तक हो जा रहे हैं। देखो यह महात्माओं का क्षेत्र रहा है। आध्यात्मिक शक्तियां भी इस क्षेत्र में रही हैं। चित्रकूट का मशहूर है, यहां राम आए थे, रुके थे। गोस्वामी महाराज जी का भी स्थान रहा है। गुरु महाराज भी इसी बुंदेलखंड में। उन्होंने बताया कि मैं यहा साधना करता था। आप ऐसे धार्मिक क्षेत्र के हो जहां संतों का निवास रहा है लेकिन उनके उपदेश को जिन्होंने छोड़ दिया, वह देखो परेशान है।

महापुरुषों ने जैसा बताया वैसा करते नहीं लोग इसलिए दु:खी हैं, सुख-शांति नहीं है
भाग्य किसको कहते है? भाग्य के अनुसार धन-दौलत तो मिला लेकिन सुख-शांति नहीं है। कुछ न कुछ परेशानी, दिक्कत लगी हुई है। कारण क्या है? महापुरुषों ने जो-जैसा बताया-किया, वैसा लोग आचरण-पालन नहीं किये। देखो पिता के एक आदेश पर राम ने राजगद्दी को ठोकर मार दिया। देखो बच्चियों! सीता अगर चाहती तो हनुमानजी के साथ चली आती। हनुमान, सीता को हथेली पर बैठा कर के राम के सामने खड़ा कर देते लेकिन नहीं आई।

एकै धर्म एक वृत नेमा।
काय वचन मन पद-पद प्रेमा।।

पति के चरण के अलावा और किसी को देखती ही नहीं थी। रावण कितना समझाने की कोशिश किया। एक बार बिलोक मम् मोरा एक बार मेरी तरफ देख लो। सीता अगर बात भी करती थी तो तिन धर वोठ कहै बय देही तिनका आंख के सामने लगाकर के बात करती थी, कि उसकी आंखों से आंखें न मिल जाएं। आप समझो, आर्दश का पालन जब करोगी तब शांति, सुकून मिलेगा, तब तकलीफ दूर होंगी।

राजा राम के राज्य में किसान खेत में खड़ा होकर पानी मांगता था, बादल बरस जाते थे
राम के राज में देखो कोई कोढी, अपाहिज, लंगड़ा होता ही नहीं था, अल्प मृत्यु नहीं होती थी, जवानी में लोग मरते नहीं थे, बुढ़ापा जब आता था तब समय पूरा होने के बाद ही जाते थे। मधुमक्खियों के छत्ते लगे हुए थे। मक्खियां हट जाती थी, लोग मधु को निकाल लेते थे। मांगे बारिश दे मम, रामचंद्र के राज। किसान खेत में खड़ा होकर पानी मांगता और बादल बरस जाते थे। जिस तरह से महापुरुषों ने किया, उस तरह से करने लग जाएं तो अभी प्रकृति भी साथ देने लग जाए, समय पर जाड़ा, गर्मी, बरसात होने लग जाए।

देवता जब खुश हो जाते हैं तो समय पर सर्दी, गर्मी, बरसात देते हैं और जब नाराज होते हैं तो वही तेज कर देते हैं
समझो हवा, पानी, सूरज की रोशनी भी जरूरी है लेकिन ज्यादा कोई चीज हो जाती है तो नुकसान भी करती है। ये जो शीतलहर चल रही है, पहले के समय में ऐसा नहीं था। तब मौसम अनुकूल रहता था। बहुत खुशहाल लोग रहते थे। ज्यादा ठंडी-गर्मी नहीं होती थी। पहले सूखा-अकाल नहीं पड़ता था।

सतयुग में एक बार किसान बोते थे 27 बार काटते थे, आगे ऐसा हो जाएगा
सतयुग का तो ऐसा इतिहास बता रहा है- एक बार लोग बोते थे, 27 बार काटते थे। लेकिन अब कोई अगर पानी चाहे तो कुदरत पत्थर ओले दे देती है। गर्मी अगर चाहे तो आंधी पड़ने लगती है। इनके नियम के खिलाफ जैसे काम कर रहे है ऐसे यह भी सजा देने के लिए खिलाफ चलने लग गए। पहले सजा नहीं देते थे, एक तरह से आदमी के दोस्त थे।पहले लोगों की नीयत सही रहती थी, राम के राज्य में।

जननी सम जानहिं पर नारी।
धन पराव विष ते विष भारी।।

दूसरे के धन को लोग जहर और मां-बहन को अपनी मां-बहन की तरह समझा करते थे। इसलिए आप सभी लोगों को महापुरुषों से सीख लेने और वैसा आचरण करने की जरूरत है। https://gknewslive.com

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