लखनऊ। दुःखहर्ता अंतर्यामी सर्वत्र व्याप्त सर्व समर्थ त्रिकालदर्शी महापुरुष उज्जैन वाले सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज ने अपने भक्तों को सतसंग में बताया कि भावना ही सब कुछ होती है। भावना जब खराब हो जाती है तब काम नहीं होता है, लक्ष्य उद्देश्य पूरा नहीं होता है। द्रौपदी की भावना ही तो खराब हुई थी जब वो सुपच को प्रार्थना करके लाई थी।
भाव खराब होने से महाभारत के बाद का अश्वमेध यज्ञ पूरा नहीं हुआ
महाभारत के बाद कृष्ण ने कहा अश्वमेध यज्ञ करो। यज्ञ किया, सबको बुलाया, खिलाया लेकिन (यज्ञ समाप्ति के बाद बजने वाला) घंटा नहीं बजा। कृष्ण से पूछा घंटा क्यों नहीं बजा? बोले सुपच नहीं खाए। सुपच को बुलाने सब लोग गए लेकिन सुपच नहीं आए। वो एक ही सवाल सबसे करते थे जो हमको सौ अश्वमेध यज्ञों का फल देगा उसके कहने पर हम खाने के लिए जाएंगे। भीम अपने बल के अंहकार में लेने गया तो पहचान गए, कहा पहले मेरी सुमरनी (माला) खूंटी पर से उतार दो। नहीं उतर पाया, माफी मांग के खाली लौट गया। जब द्रौपदी गई तो उससे भी यही सवाल किया तब द्रौपदी ने कहा-
सन्त दरस को जाइए, तज ममता अभिमान।
जयों-जयों पग आगे बढै, कोटिन यज्ञ समान।।
आप जैसे सन्तों ने ही बताया है कि संतों के दर्शन करने के लिए जाने से एक-एक कदम पर करोड़ों यज्ञ का फल मिलता है। तो इतनी दूर से चल करके आई तो सोचो मुझे कितना फल मिला होगा। ले लो महाराज, जो फल हमको मिला होगा उसी में से जितनी इच्छा हो ले लो। तो मजबूर हो कर गए। द्रौपदी ने 36 प्रकार के व्यंजन परोसे। सन्तों को स्वाद से मतलब नहीं होता तो वो सबको एक में मिलाकर कर खाने लगे।
महाभारत के लिए कृष्ण ने अपने आध्यात्मिक गुरु सुपच से दया धार हटाने की प्रार्थना किया
सुपच पूरे सन्त थे। सन्त हमेशा इस धरती पर रहते हैं। कभी गुप्त रूप में तो कभी प्रकट रूप में रहते हैं। जब ज्यादा पापाचार, अत्याचार, दुराचार बढ़ जाता है तो घूम-घूम कर लोगों को बताते, समझाते हैं। जब कम रहता है तो एक जगह बैठ करके संभाल करते रहते हैं। तो सुपच को लोग कम जानते हैं क्योंकि एक जगह बैठ कर के संभाल करते रहते थे। लेकिन कृष्ण के वह आध्यात्मिक गुरु थे। कृष्ण के विद्या गुरु अलग संदीपनी थे। ऐसे ही राम के आध्यात्मिक गुरु वशिष्ठ और विद्या गुरु विश्वामित्र थे। तो कृष्ण को भी जब महाभारत करने को हुआ था तब सुपच जी से प्रार्थना किया कि आप अपनी दया की शक्ति को, धार को इन पर से हटा, खींच लीजिए। दया की धार अगर रहेगी तो हमारी काल की धार काम नहीं कर पायेगी। यह समझाने बताने पर मानने वाले नहीं हैं। विनाश काले विपरीत बुद्धि। इनकी बुद्धि विपरीत हो गई हैं, इनका तो विनाश होना ही होना है।
शरण में आये हुए को त्यागा नहीं जाता
तो जब वो सब व्यंजन मिला कर खाने लगे तो द्रौपदी के भाव खराब हो गए। कहा ये गंवार, जंगल में रहने वाले राजस्वी भोजन क्या जाने। मैंने इतनी मेहनत से एक-एक चीज चुन-चुन करके बनाया, उन्होंने नाश कर दिया। एक-एक चीज खाना चाहिए, इनको क्या स्वाद मिलेगा। भाव खराब हो गया तो घंटा नहीं बजा। भाव खास चीज होती है। जब कृष्ण से कारण पूछा तो बोले इसकी जिम्मेदार द्रौपदी है। द्रौपदी से पूछा तो अपनी गलती का एहसास कर गई, तुरंत सुपच के चरणों में गिर कर बोली- क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात। आप बड़े हो, आप हमको क्षमा करो। तब यह भी कहा गया-
तन-धन बाम सुत जाई।
ताजिए न ताहि शरण जो आई।।
जो कोई शरण में आ जाता है, उसको त्यागते नहीं है। देखो शरण में आ जाने के बाद, जबान दे देने के बाद लोगों ने क्या-क्या नहीं किया। पूर्वज राजा हरिश्चंद्र ने जब जबान दे दिया तो पूरा पालन किया। मरघट में जा करके उन्होंने कर वसूला, नौकरी किया। शरण में आये कबूतर के बदले राजा शिबि ने अपना मांस चढ़ा दिया था जब इंद्र कबूतर बन करके गए थे। तब सुपच जी ने शरण में आई द्रौपदी को माफ किया और तब घंटा बजा था। देखो बच्चियों! भाव नहीं खराब करना चाहिए।
सन्त उमाकान्त जी के वचन
जो सब का पिता है, उस को याद करोगे तो आप को मिल जाएगा। गुरु से दया लेकर काम करो और फायदा लो। सतगुरु से छोटी चीज नहीं मांगनी चाहिए, सतगुरु से सतगुरु को ही मांगना चाहिए। साधक छोटी चीजों को नहीं मांगते। सन्त, लोगों के तन मन धन से सेवा करा करके उनके कर्मों को कटवा देते हैं। https://gknewslive.com