लखनऊ। हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व होता है और आज से चैत्र माह के शुरू हो चुके है। नवरात्री में मां दुर्गा की नौ रूपों की बड़े विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है और घर-घर में कलश स्थापना कर देवी को विराजमान किया जाता है। पूजा-पाठ के अलावा मां का आशीर्वाद पाने के लिए दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा का पाठ अवश्य ही करना चाहिए। अगर किसी कारणवश दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा का पाठ नहीं कर सकते तो कम से कम ‘ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे’ की एक माला हर रोज अवश्य करें। मां दुर्गा को सुख, समृद्धि और धन की देवी माना जाता है। मां दुर्गा जिससे भी प्रसन्न होती हैं, उस पर अपनी कृपा अवश्य बरसाती हैं। वैसे तो साल भर में चार नवरात्रि आती हैं, लेकिन शारदीय और चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व होता है। जानिए आखिर किस दिन कौन सी देवी की पूजा की जाती है।
पहला दिन, मां शैलपुत्री
नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के पहले स्वरूप माता शैलपुत्री की उपासना की जाती है। मार्केण्डय पुराण के अनुसार पर्वतराज, यानि शैलराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। साथ ही माता का वाहन बैल होने के कारण इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। आपको बता दें कि मां शैलपुत्री के दो हाथों में से दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल सुशोभित है।
दूसरा दिन, मां ब्रह्मचारिणी
नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा के द्वितीय स्वरुप देवी ब्रह्मचारिणी का पूजन किया जाता है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ होता है, तप का आचरण करने वाली। इनका का स्वरूप अत्यंत तेजमय और भव्य है। इनके वस्त्र श्वेत हैं। मां ब्रह्मचारिणी अपने दाहिने हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल धारण करती हैं।
तीसरा दिन, मां चंद्रघंटा
माँ दुर्गाजी की तीसरी शक्ति का नामचंद्रघंटा है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है और इस दिन इन्हीं के विग्रह का पूजन-आराधन किया जाता है। इस दिन साधक का मन ‘मणिपूर’ चक्र में प्रविष्ट होता है। लोकवेद के अनुसार माँ चंद्रघंटा की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियाँ सुनाई देती हैं। ये क्षण साधक के लिए अत्यंत सावधान रहने के होते हैं।
चौथा दिन, मां कूष्माण्डा
मां दुर्गा का चौथा स्वरुप देवी कुष्मांडा है इनका सूर्य के समान तेज है। वे अपनी चमक से पूरे ब्रह्मांड को जगमगा सकती हैं। आठ भुजाओं वाली मां कुष्मांडा कमंडल, धनुष, अमृत कलश, जपने माला, गदा और चक्र समेत अन्य सामग्रियां रहती है।
पांचवां दिन, मां स्कंदमाता
इनकी चार भुजाएं होती हैं, जिससे वो दो हाथों में कमल का फूल थामे दिखती हैं। एक हाथ में स्कंदजी बालरूप में बैठे होते हैं और दूसरे से माता तीर को संभाले दिखती हैं। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं।
छठे दिन, मां कात्यायनी
नवरात्रि के छठे दिन मां दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की पूजा की जाती है। मां कात्यायनी का स्वरूप भव्य और अत्यंत चमकीला होता है। मां सिंह की सवारी करती हैं। ऊपर उठा उनका एक दाहिने हाथ अभय मुद्रा में होता है, जबकि दूसरी दाहिनी भुजा वर मुद्रा में है। उनके एक बायें हाथ में तलवार और दूसरे में कमल पुष्प है।
सांतवा दिन, मां कालरात्रि
मां दुर्गा का सांतवा स्वरुप देवी कालरात्रि का है इनके चार हाथ हैं। उनकेके एक हाथ में माता ने खड्ग (तलवार), दूसरे में लौह शस्त्र, तीसरे हाथ वरमुद्रा और चौथे हाथ अभय मुद्रा में है। मां कालरात्रि का वाहन गर्दभ अर्थात् गधा है।
नवरात्रि के आठवें दिन मां के आठवें स्वरूप महागौरी की उपासना की जाती है। मां की चार भुजाएं हैं। वह अपने एक हाथ में त्रिशूल धारण किए हुए हैं, दूसरे हाथ से अभय मुद्रा में हैं, तीसरे हाथ में डमरू सुशोभित है तथा चौथा हाथ वर मुद्रा में है। मां का वाहन वृष है। साथ ही मां का वर्ण श्वेत है।
माँ दुर्गाजी की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र-पूजन के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता है। ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाती है।