लखनऊ: आदि से अंत तक का पूरा भेद जानने और बताने वाले, जीवों के अपने घर जयगुरुदेव धाम से आये हुए, सब जीवों के पिता सतपुरुष को जिनमें देखा जा सकता है ऐसे वक़्त के महापुरुष, इस धरती पर मनुष्य शरीर में मौजूदा पूरे पहुंचे हुए समरथ त्रिकालदर्शी दुःखहर्ता अन्तर्यामी सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी ने अपने संदेश में बताया कि
सतयोगी योगी सब विज्ञानी।
करि हरि ध्यान तरै भव प्राणी।।
सतयुग में समय जब पूरा होता था तो जीवात्माएं अपने घर अपने मालिक के पास पहुंच जाती थी। जिस शब्द की डोर से उतारी गई उसी को पकड़ लेती थी जीवात्मा और वह शब्द खींच ले जाता जैसे बड़ा चुम्बक छोटे चुम्बक को खींच लेता है लेकिन तब जब एक बार रास्ता मालूम हो जाए, एक बार शब्द को जीवात्मा से पकड़ा दिया जाए।

जब कर्मों का विधान बना दिया तब ऊपर जाना बंद हो गया। कर्म किसको कहते हैं- अच्छा और बुरा।

सबसे पहले चार वेद बने फिर छह शास्त्र उससे निकले फिर 18 पुराण हुए

4 वेद सबसे पहले बने।। फिर 6 शास्त्र उससे निकले। फिर 18 पुराण हो गए। अब तो पुराण के पुराण बहुत हो गए लेकिन अब उनको लोग समझ नहीं पाते। वेद संस्कृत में बना। पहले दुनिया में हिंदी या अन्य भाषाएं नहीं थी। केवल संस्कृत भाषा थी। संस्कृत में लिखा है। संस्कृत लोग पढ़ते नहीं इसलिए समझ नहीं पाते तो उसको हिंदी में लिखते हैं तो भी कुछ न कुछ अंतर हो जाता है। समझने वाले के जैसा मन में रहता है वैसा समझते हैं। समझाने वाले अपनी समझ से लोगों को समझाते हैं। इसलिए सही विधान लोगों के समझ में नहीं आ पाता।

वेद में एक लाख श्लोक, विधान लिखे हुए हैं

वेद में 1लाख श्लोक हैं, विधान समझ लो। जैसे आपका विधान बना हुआ है देश का, समाज जाति बिरादरी का, घर का नियम बना हुआ है ऐसे ही पूरे मृत्युलोक का विधान, नियम बना हुआ है। नियम किसने बनाया? जिसने दुनिया, संसार, सूरज, चांद, जल, पृथ्वी बनाया। यह बनाने के लिए जिनको ईश्वर निरंजन भगवान कहा गया, मुसलमानों ने खुदा, ईसाइयों ने गोड कहा, उनके पास मसाला था, बनाया लेकिन विधान बनाने में सक्षम नहीं थे, बना नहीं सकते थे। द्वापर में जब अत्याचार पापाचार दुराचार बहुत बढ़ा था तब धर्म की स्थापना के लिए ऊपर के ब्रम्ह से कृष्ण को भेजा गया था। मां के पेट में ही शक्तियां बनती, पलती, बाहर आकर मौजूदा गुरु के पास जा कर उनसे सीख करके शक्ति को अपने अंदर धीरे-धीरे ग्रहण करती हैं। माताएं जैसे बच्चे को पहले अपना दूध पिलाती है फिर गाय भैंस का फिर भोजन कि थोड़ी-थोड़ी ताकत इसकी बढ़ती जाए। ऐसे ही शक्ति वह धीरे-धीरे देता है जहां से शक्तियां, ताकतें भेजी जाती हैं। तो ब्रह्म स्थान है, त्रिकुटी स्थान है। वहां के मालिक कौन है? ब्रह्म जिनको कहा गया।
व्यापक ब्रह्म निरंजन निर्गुण विगत विनोद।
सो अज प्रेम भगति वश कोशल्या के गोद।।
कौशल्या के गोद में राम आये थे। वो सहस्त्र दल कमल से भेजे गए थे।

ब्रह्मा विष्णु और महेश, निरंजन भगवान के पुत्र हैं

आप समझो ब्रह्म से उन्होंने मांगा कि विधान बनाने की शक्ति दीजिए या आप विधान बना दीजिये। वहां से आवाज निकली और विधान बनने लग गया। जैसे यहां अधिकारी बोलते जाते हैं और स्टेनो बाबू लिखता जाता है ऐसे ही एक-एक चीज वो बोलते गए। वही शब्द के जरिए नीचे उतरती गई। वह ब्रह्मा को सीधा सुनाई पड़ने लग गया।

पाप-पुण्य का विधान ब्रह्मा के मुंह से सुनकर ऋषि-मुनियों ने भोजपत्र पर लिखा था

ब्रह्मा कौन है? ईश्वर निरंजन भगवान जिनको कहा गया उनके तीन पुत्र ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं। ब्रह्मा को केवल आवाज सुनाई पड़ी। देखा नहीं उन्होंने कि किसके मुंह से आवाज निकल रही है। ब्रह्मा को फिर ईश्वर उनके पिता का आदेश हुआ। पिता को भी नहीं देख पाए लेकिन उनको विश्वास हो गया कि पिता की ही आवाज है कि मृत्यु लोक में यह नियम लागू करवा दो। इस मृत्युलोक में उस समय कौन लोग थे? उस समय यहां आध्यात्मिक साधना में लगे मनुष्य ऋषि मुनि योगी योगेश्वर थे। जहां तक जिनकी पहुंच, स्थान होता है वैसा उसका दर्जा होता है। ब्रह्मा का आदेश हुआ ऋषि-मुनियों को सुनाई पड़ा, अंदर वाले तीसरे कान से बराबर आवाज आती रही। सुनते रहे, याद करते चले गए। उन्होंने बताना शुरू किया है कि यह विधान मृत्युलोक का है, अच्छे-बुरे का है। उस समय तो कंप्यूटर था नहीं। उस समय पर पेड़ की छाल को निकाल कर पेड़ से पानी जो निकलता गाढ़ा हो जाता था उससे और पेड़ की टहनी से कूची बनाकर के उसको लिखते थे, जिसको भोजपत्र कहते हैं।

वेद में सब लिखा हुआ है- कर्मकांड उपासना कांड ज्ञान कांड आदि

4 वेद में क्या है? नियम ही है। इसमें सब लिखा हुआ है- कर्मकांड, उपासना कांड, ज्ञान कांड आदि सब भरा पड़ा हुआ है। मोटी बात समझो पाप और पुण्य का नियम बन्धन बना दिया। उसमें जीव बंध गया। अब तक बंधा पड़ा हुआ है, निकल नहीं पा रहा है। अब जीव निकलेगा कैसे, बताता हूँ।

admin

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *