लखनऊ: गोमती रिवरफ्रंट की जांच कर रही सीबीआई (CBI) ने उत्तर प्रदेश के दो पूर्व मुख्य सचिव के खिलाफ जांच के लिए सरकार से अनुमति मांगी है। सीबीआई लखनऊ की एंटी करप्शन ब्रांच ने प्रदेश सरकार से पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन और दीपक सिंघल के खिलाफ जांच के लिए अनुमति मांगी है। गोमती रिवरफ्रंट की जांच कर रही सीबीआई को इंजीनियरों और दूसरे अफसरों से पूछताछ के बाद मिले सुराग और अहम दस्तावेज के आधार पर इन दो बड़े अफसरों तक इसकी आंच पहुंच गई है। अब सरकार की मंजूरी मिलने के बाद आलोक रंजन और दीपक सिंघल के खिलाफ भी इस मामले शिकंजा कसेगा। गोमती रिवरफ्रंट 1400 करोड़ से अधिक का पूरा घोटाला है अब तक इसमें 189 लोगों के खिलाफ एफ आई आर दर्ज की जा चुकी है।
बता दें गोमती रिवरफ्रंट निर्माण के वक्त आलोक रंजन (Alok Ranjan) मुख्य सचिव और दीपक सिंघल (Deepak Singhal) सिंचाई विभाग के प्रमुख सचिव के पद पर तैनात थे। बाद में दीपक प्रदेश के नए मुख्य सचिव बने थे। इन दो बड़े अफसर की निगरानी में गोमती रिवरफ्रंट का कार्य हो रहा था। आरोप है कि पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के इस ड्रीम प्रोजेक्ट को जल्द पूरा करने के नाम पर बड़े पैमाने पर घोटाला हुआ है. इसी की जांच के लिए योगी सरकार ने सीबीआई को पूरा मामला सौंपा है। अब सीबीआई आलोक रंजन व दीपक सिंघल के खिलाफ जांच की मंजूरी उनसे मांगी है।
क्या है गोमती रिवरफ्रंट घोटाला?
पूर्व की सपा सरकार में गोमती रिवर फ्रंट के लिए करीब 1438 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। बावजूद इसके गोमती के किनारों और नदी की सफाई का काम अधूरा ही रह गया। सिंचाई विभाग ने यह परियोजना गोमती नदी को केंद्रित कर तैयार की थी। सबसे बड़ा काम गोमती में गिरने वाले गंदे पानी को रोकना था। इसके लिए नदी के दोनों किनारों पर ट्रंक सीवर लाइन डालने का काम शुरू हुआ था। शुरुआती बजट 270 करोड़ रुपये स्वीकृत हुआ लेकिन बाद में इंजीनियरों और अधिकारियों ने इस परियोजना ने अपना ध्यान हटा लिया। आज भी 37 नालों का गंदा पानी गोमती नदी में गिर रहा है। सीएम योगी आदित्यनाथ ने कुर्सी संभालने के बाद 27 मार्च को गोमती रिवर फ्रंट का दौरा किया। एक अप्रैल को रिवर फ्रंट घोटाले की जांच के लिए रिटायर जस्टिस आलोक सिंह की अध्यक्षता में समिति का गठन किया गया। समिति ने 45 दिन के बाद 16 मई को अपनी रिपोर्ट सौंपी। इसके बाद समिति की रिपोर्ट में दोषी पाए गए लोगों पर क्या कार्रवाई की जाए इसके लिए नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना को जिम्मेदारी सौंपी गई। सुरेश खन्ना की रिपोर्ट आने के बाद सिंचाई विभाग की तरफ से 19 जून को गोमती नगर थाने में एफआईआर दर्ज कराई गई। इसमें रिटायर मुख्य अभियंता गुलेश चंद्र, तत्कालीन मुख्य अभियंता एसएन शर्मा, काजिम अली, तत्कालीन अधीक्षण अभियंता शिव मंगल यादव, कमलेश्वर सिंह, रूप सिंह यादव और अधिशाषी अभियंता सुरेन्द्र यादव को नामजद किया गया। 20 जुलाई 2017 को मामले की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश केंद्र को भेजी गई। 30 नवंबर 2017 को सीबीआई लखनऊ ने इस मामले में पीई दर्ज कर जांच शुरू की। इस मामले में ईडी भी आरोपियों के खिलाफ मनी लांड्रिंग एक्ट के तहत केस दर्ज कर जांच कर रही है। 24 जनवरी 2019 को ईडी ने इस मामले में लखनऊ, नोएडा व गाजियाबाद के नौ ठिकानों पर छापेमारी की।