लखनऊ: इस मृत्युलोक में और नरकों में दुःख पाती जीवात्माओं की करुण पुकार से द्रवित होकर सन्त के रूप में जग में आये हुए स्वयं सतपुरुष, नरकों की भयंकर पीड़ा से जीवों को बचाने के लिए दिन-रात अनवरत कड़ी मेहनत करने वाले, तरह-तरह से समझा कर चेताने वाले वर्तमान के सन्त सतगुरु दुःखहर्ता त्रिकालदर्शी परम दयालु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने तपस्वी भंडारा कार्यक्रम में 27 मई 2022 प्रातः काल को उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि पहले की पूजा उपासना कठिन थी। कर्म कट नहीं पाते थे तो नर्कों में जीवों को जाना पड़ा। वहां बड़ी सजा मार पड़ती है। 22 बड़े और छोटे-बड़े मिलाकर 42 प्रकार के नरक हैं। कोई लैट्रिन का, पेशाब, तेजाब, मुर्दों, अग्नि, काँटों का, मरे सड़ते जंगली जानवर। उसमें डाल देते हैं, (अंग) काटते हैं फिर जोड़ते फिर काटते हैं, बार-बार। सजा भोगने के लिए ही नर्कों में डाला जाता है।
नरकों, चौरासी लाख योनियों में जबरदस्त सजा भोगनी पड़ती है
एक-दो दिन नहीं बहुत लंबे समय तक नर्कों में रहना पड़ता है। सतयुग, त्रेता द्वापर और कलयुग – इन चारों युगों की एक चौकड़ी, 72 चौकड़ी बीतने पर, एक मन्वंतर, 14 मन्वंतर का एक कल्प होता है। एक-एक कल्प एक-एक नर्क में कर्मों के अनुसार रहना पड़ता है। जब वहां से छुटकारा मिला तो कीड़ा, मकोड़ा, सांप, गोजर, बिच्छू आदि योनियों में डाल दिया जाता है। सजा भोगने के बाद 9 महीना मां के पेट में दादुर पक्षी के समान उल्टा लटका दिया जाता है। मालिक की दया से बर्दाश्त कर पाता है। सजा मिलती है तो ऐसे उल्टा लटका बच्चा प्रभु से बाहर निकालने की प्रार्थना करता है। बाहर निकल कर गुरु याद आते हैं? नहीं आते। अभी कहा जा रहा सुमिरन ध्यान भजन, गुरु प्रभु को याद करते रहो, नहीं करते हैं। जब तकलीफ आती है तब या गुरु महाराज या गुरु महाराज, दया करो दया करो। अरे!
दु:ख में सुमिरन सब करै, सुख में करै न कोई।
जो सुख में सुमिरन करै, तो दु:ख काहे को होय।।
दु:ख तो आपने पैदा किया। तो ऐसा काम करो ही क्यों की दु:ख पैदा हो।
मुकदमेबाजी से बचो
बड़ी तकलीफ। एक बार (नरक चौरासी में) फंसने पर जल्दी छूटता नहीं है। जैसे एक-दो बार जेल गया, सुधर नहीं रहा तो पुलिस की नज़र बनी रहती है। कोई भी वारदात हो, पकड़ा जाता है। नहीं कुछ होगा तो पूछताछ तो करेंगे ही। मुकदमेबाजी में फसें तो ये खत्म होने वाली नहीं है। जैसे पेड़ों में जड़ में जड़ निकलती रहती है ऐसे मुकदमे में भी जड़ निकलती रहती है और उसी में जूतियाँ घिस जाएंगी, जमीन, जेवर बिक जाएगा। मुकदमेबाजी, लड़ाई, झगड़ा-झंझट से बचो। कम खाओ, गम खाओ, कोई कुछ कहे, दो बात बर्दाश्त कर लो।
पहले अगर गुरु प्रभु सन्तों को याद करते, उनके बताये रास्ते पर चलते तो तकलीफ़ नहीं आती
जीव फंस गए नर्कों में तब चिल्लाये। पहले चिल्लाए याद किए होते प्रभु को तो उसका नाम है दीनबंधु दीनानाथ गरीब परवर तो यह तकलीफ क्यों आती? वो दया करता। पहले अगर सन्तों, पूरे फकीरों, स्पिरिचुअल मास्टर के पास चले गए होते तो वह सब सिखा देते हैं। ये कर्म आते ही नहीं कि नर्कों में जाना पड़े। लेकिन न होने से नरकों में जाना पड़ा।
जो साधक हो ध्यान लगाओ, देखो बहुत से जीव अभी भी नरकों में जा रहे हैं
बहुत जीव अभी नरकों में जा रहे हैं। आप अपनी (तीसरी) आंख खोलो, साधना करो, नर्क की तरफ जाओ, देखो कितनी मार पड़ रही है नर्कों में, तो आप दु:खी, द्रवित हो जाओगे। वहां चिल्लाने की आवाज सौ-सौ कोस तक जा रही है। जो साधक हो ध्यान लगाओ, देखना शाम को रात को। देवी-देवता जिनकी पूजा उपासना में संसार के लोग लगे हुए हैं, वो भी नरकों की तरफ जाना पसंद नहीं करते
नालायक बेटा जेल चला जाये तो पिता को भाई से ज्यादा दर्द होता है। खुद तकलीफ पाकर छुड़वाता है। ऐसे ही उस प्रभु परम पिता को दर्द हुआ जिसके आप जीवात्माएं अंश हो। तब सन्तों को भेजा। सन्तों को सुनने वाला कौन है आजकल? असली सही चीज को लोग भूले हुए हैं। अधिकांश सतसंगी भी भूले हैं। नामदान लेने से नहीं, सत्य का संग करने पर सतसंगी कहलाता है। प्रभु और मौत सत्य है। दोनों को लोग भूल गए, इंद्रियों के भोग में फंस गए। कोई उपाय बताने वाला नहीं मिला। बस खाओ पियो बच्चा पैदा करो और दुनिया से चले जाओ। इसलिए सन्त के, वक़्त गुरु के सतसंग में जाना चाहिए।