उत्तर प्रदेश : कृष्ण जी ने गीता में चौथे स्कंध के 34वें श्लोक में कहा, समरथ सन्त सतगुरु के बिना जीवात्मा का उद्धार नहीं हो सकता
धार्मिक ग्रंथों को केवल पढ़ने की बजाय उनका असली मतलब गूढ़ तत्व सार बताने वाले, जैसे कृष्ण जी ने द्वापर में अर्जुन की तीसरी आंख शिव नेत्र खोल कर विराट स्वरूप दिखाया था. ऐसे ही अब कलयुग में दिव्य चक्षु खोल कर अपनी जीवात्मा की असली पहचान और जीते जी देवी-देवताओं के दर्शन करने का मार्ग नामदान बताने वाले इस समय धरती पर मनुष्य शरीर में आये स्वयं प्रभु, मौजूदा वक़्त के महापुरुष सन्त सतगुरु दुःखहर्ता त्रिकालदर्शी परम दयालु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 18 अगस्त 2022 प्रातःकालीन बेला में महोबा (उ.प्र.) में दिए आपने संदेश में बताया कि सन्त मानव शरीर में ही आए। बाहर से उनकी पहचान नहीं हो पाती है। उनकी पहचान अंतर से ही की जा सकती है। जब आपको अपनी पहचान होगी, आप अपने रूप को अंतर में देखोगे तब आप कहोगे मेरे अंदर बहुत बड़ी शक्ति है, मैं तो परमात्मा की अंश हूं। कब? जब उपाय मालूम हो जाए तब।
बराबर सतसंग सुनने की इच्छा बनाए रखना चाहिए:-
सन्त जीवात्मा को याद दिलाते हैं, कहते हैं तुम उपाय करो। बराबर सतसंग सुनने की इच्छा बनाए रखना चाहिए। इसी मनुष्य शरीर में खोजो, वह मालिक मिलेगा। जब वह मिल जाएगा, देख लेगा तुम्हारी तरफ, तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार हो जाएगी। प्रार्थना करोगे कि आप हमको अपने पास बुला लो तो वो बुला लेगा।
कोई जानकार समरथ सतगुरु जब रास्ता बताएंगे तभी परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है:-
वह बता दें तो परमात्मा मिल सकता है। जिनको मिला डंके की चोट पर उन्होंने कहा (की मुझे मिला)। इसी मनुष्य शरीर में ही मिलता है। कबीर साहब ने कहा
ज्यो तिल माही तेल है, ज्यों चकमक में आग।
तेरा साईं तुझमें, जान सके तो जान।।
जो जानने की कोशिश करता है वही जान सकता है, वही उसको पाता है। मिलता इसी मनुष्य शरीर के अंदर ही है। परमात्मा का, देवी-देवताओं का दर्शन इसी मनुष्य शरीर में ही होता है। जिनको जितनी जानकारी है वह उतनी ही बात बताता है।
बाबा जयगुरुदेव जी महाराज ने लोगों की रक्षा के लिये जय गुरु देव नाम को जगाया:-
महाराज जी ने बताया की जैसे त्रेता में राम नाम जगाया। विभीषण की कुटिया पर राम नाम लिखा हुआ था। इतनी शक्ति राम नाम में थी कि उस समय लंका जब जली तो विभीषण की कुटिया बच गई। द्वापर में कृष्ण नाम की शक्ति बढ़ी। उन्होंने कृष्ण नाम को जगाया। कृष्ण-कृष्ण जहां पर जिसने पुकारा कृष्ण खड़े हुए मिले। कलयुग आया। कलयुग में सतनाम कबीर साहब जी ने जगाया। वाहेगुरु को जगाया नानक जी ने, शिव दयाल जी महाराज जी ने राधास्वामी नाम जगाया और हमारे गुरु महाराज जी ने जय गुरु देव नाम जगाया। आज भी इस नाम में शक्ति है। कोई भी शाकाहारी सदाचारी नशामुक्त मुसीबत में बोलकर मदद ले सकता है। जैसे राम-कृष्ण का साथ बंदर, भालू, ग्वालों ने दिया ऐसे ही गुरु महाराज के सतयुग लाने के मिशन में जो लगेगा, उसका नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा।
इतिहास गवाह है कि युग परिवर्तन के समय भारी जन-धन हानि हुई लेकिन हम बचाना चाहते है:-
महाराज जी उज्जैन में बताया की इतिहास बताता है कि जब त्रेता युग समाप्त हुआ तब जन-धन की हानि बहुत हुई। द्वापर समाप्त हुआ तब भी जन-धन की हानि बहुत हुई। ऐसे ही जब कलयुग समाप्त होगा तो जन-धन की हानि से क्या कोई बच पाएगा? लेकिन हम यह चाहते हैं, हमारे गुरु महाराज भी यही चाहते थे कि जन-धन की हानि कम हो और लोगों में बदलाव आ जाए।
देखो! अवतारी शक्तियां राम और कृष्ण में दयाल और काल धार दोनों थी। राम ने कहा:
काल रूप तिनकर मैं भ्राता।
शुभ और अशुभ कर्म फल दाता।।
मैं तो जो काल का काम है, वह भी करता हूं और दया भाव भी है मेरे अंदर। जो दया के घाट पर बैठता है, उसको दया देता हूं और जो काल के स्थान पर रहता है, उसको सजा भी देता हूं। कृष्ण में भी दोनों धारें थी। दया की धार थी तो उन्होंने नंगे पैर दौड़ कर आकर द्रोपति की रक्षा किया। और काल की धार भी थी। महाराज जी ने महाभारत के दौरान राजा उडुपी की कहानी से समझाया कि अवतारी शक्तियों में काल और दयाल दोनों धार होती है लेकिन सन्त में केवल दया धार होती है। उन्होंने 18 दिनों में महाभारत करवा कर 11 अक्षौहिणी सेना और एक घंटे में 56 करोड़ यदुवंशियों को ख़तम करवा दिया। अकाल म्रत्यु में चले गए। कुरुक्षेत्र में आज भी लोगों को आवाज़े आती हैं, प्रेत आत्माएं आज भी लड़ाई लड़ रही हैं और वहां के लोगों को घर-घर में घूमकर परेशान कर रही हैं। हम यह नहीं चाहते हैं कि अकाल मृत्यु में लोग मरें, प्रेत योनि में चले जाएं और जो इस धरती पर रहे हैं उनको भी परेशान करें और खुद भी परेशान रहें।