उत्तर प्रदेश : जमींदोज हुई नोएडा की गगन चुंबी ईमारत , महज 12 सेकेंड के अंदर मलबे में तब्दील हुई कुतुब मीनार से भी ऊंची बानी ट्विन टावर। पर आखिर ऐसा क्या हुआ की 200 करोड़ की लगत से बनी इस इमारत को तोड़ने की नौबत आगई :-

बतादें , 23 दिसंबर 2004 में सुपरटेक कम्पनी को नोएडा के सेक्टर 93ए में एमरॉल्ड कोर्ट के नाम पर भूखंड आबंटित किया गया था। जिसमें 14 टावर का नक्शा पास हुआ था। लेकिन इसके बाद इस योजना में तीन बार बदलाव किया गया। 26 नवंबर, 2009 में नोएडा प्रशासन ने 17 टावर बनाने के लिए नक्शा पास किया। जिसके बाद अनुमति लगातार बढ़ाई जाती रही।

2009 तक 90 फीसदी क्षेत्र पर निर्माण कार्य पूरा हो गया था। लेकिन, फिर 2011 में दो नए टावर बनाए जाने की खबरें सामने आईं। जिसका सीधा मतलब था की, 12 एकड़ में रह रहे 900 परिवारों को 1.6 एकड़ में बसाने की तैयारी शुरु हो गई है। ग्रीन जोन के लिए रखा गया 10 हिस्सा भी इस बढ़ते निर्माण के चलते खतम होने लगा।

असल दिकक्त तब शुरु हुई जब 2 मार्च, 2012 में टावर संख्या 16 और 17 को लेकर दोबारा संशोधन किया गया और इन्हे 40 मंजिल तक बनाए जाने की अनुमति दी गई। इन टावर की ऊंचाई 121 मीटर तय हुई। दोनों टावरों के बीच की दूरी 8 से 9 मीटर रखी गई जो कानूनन गलत थी।

लेकिन उससे पहले, 2009 में अवैध निर्माण के खिलाफ फ्लैट खरीददारों ने आरडब्ल्यू बनाया और सुपरटेक कंपनी के खिलाफ कानूनी लड़ाई शुरू कर दी थी। सबसे पहले फ्लैट खरीददारों ने आरडब्ल्यू नोएडा प्रशासन के पास भेजा पर जब वहां सुनवाई नहीं हुई तो सभी फ्लैट खरीददार इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंच गए ।

2014 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ट्विन टावर गिराने का आदेश दे दिया। सुपरटेक कंपनी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। 31 अगस्त, 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा की, ट्विन टावर के निर्माण में नेशनल बिल्डिंग कोड के नियमों का उल्लंघन किया गया है। सुपरटेक एमरॉल्ड कोर्ट में जब लोगों ने फ्लैट खरीदा तो ट्विन टावर के स्थान पर ग्रीन एरिया का वादा किया गया था। लेकिन बाद में बिल्डर ने नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों से मिलकर यहां ट्विन टावर खड़े कर दिए। इसके बाद कोर्ट ने इन इमारतों को गिराने का आदेश दे दिया।

आदेश के साल भर बाद 28 अगस्त 2022 को 3700 किलोग्राम बारूद की मदद से इन इमारतों को ध्वस्त कर दिया गया। इस टावरों के ध्वस्ति कारण में करीब 17.55 करोड रुपये का खर्च आया है।

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