लखनऊ : जैसे कृष्ण जी ने द्वापर में अर्जुन की तीसरी आंख शिव नेत्र खोल कर विराट स्वरूप दिखाया था ऐसे ही अब कलयुग में दिव्य चक्षु खोल कर अपनी जीवात्मा की असली पहचान और जीते जी देवी-देवताओं के दर्शन करने का मार्ग नामदान बताने वाले इस समय धरती पर मनुष्य शरीर में आये स्वयं प्रभु, मौजूदा वक़्त के महापुरुष सन्त सतगुरु दुःखहर्ता त्रिकालदर्शी परम दयालु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज कहते है की, संत मानव शरीर में ही इस धरती पर आए है। उनकी पहचान बहार से नहीं की जा सकती। उनकी पहचान अंतर से ही की जा सकती है। जब आपको अपनी पहचान होगी, तब आप मनुष्य रूप में धरती पर मौजूद परमात्मा को पहचान सकते हो।
संत सतगुरु बाबा उमाकांत जी महाराज अपने सतसंग में कहते है की, यह संसार ही दुःखो का सागर है यहां कोई सुखी नही है। जन्म मरण से छुटकारा, दुख तकलीफ से निजात का रास्ता केवल संतो के पास होता, जो उनके सतसंग से ही मिलता है।
संसार की कोई भी वस्तु अपनी नहीं है अंत समय कुछ भी साथ जाने वाली नहीं है। सब कुछ यहीं छूट जाना है। इसलिए सभी को परमार्थ भी करना चाहिए।
संत सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज कहते है, शरीर से की जाने वाली बाहरी जड़ पूजा पाठ केवल थोड़ा बहुत अस्थाई भौतिक लाभ दे पाती है, लेकिन जब उससे आगे बढ़कर चेतन जीवात्मा से चेतन परमात्मा की रूहानी पूजा इबादत की जाती है तो भौतिक और आध्यात्मिक दोनों लाभ मिलता है
महाराज जी कहते है, साधक के सभी कार्य अंतःकरण की शुद्धि के लिए होने चाहिए। कर्मों के चक्कर से जीव अनेकों शरीर धारण करता है, और कभी भी परमात्मा को प्राप्तः नहीं कर पाता है। इसलिए अगर इस जनम मरण के चक्कर से निजाद पाना है तो सन्तों के बताए रास्ते पर चलो। जन्मों के पाप सच्चे सन्त के आंखों में देखने, प्रार्थना करने उनके दया करने से कट जाते हैं। बाबा उमाकांत जी महाराज अपने सतसंग में कहते है, इस मायावी दुनिया में सभी कष्टों से निवारण का केवल एक ही उपाय है : जयगुरुदेव नाम ध्वनि। इस खराब समय में रोज जयगुरुदेव जयगुरुदेव जयगुरुदेव जय जयगुरुदेव नाम की नाम ध्वनि बोलने से तकलीफों में आराम मिलेगा।