समस्त बुद्धि अक्ल के स्रोत, एक ही तीर से कई शिकार करने वाले यानी एक ही उपाय में सब काम करवा देने वाले, सन्त होने के नाते जीवों की भलाई के लिए अपनी पॉवर का पूरा इस्तेमाल तरह-तरह से करने वाले, जीवों को निज घर सतलोक पहुंचाने के अपने एक मात्र उदेश्य में अनवरत लगे रहने वाले, इस समय के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, त्रिकालदर्शी, परम दयालु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने उज्जैन आश्रम में दिए संदेश में बताया कि जब सन्त समरथ गुरु चला करते हैं तो बहुत से जीवों का उद्धार कल्याण हो जाता है। द्रष्टि डाल करके, छू कर दया कर देते हैं। कुछ पैदल चलने में भी कीड़े-मकोड़े पैर के नीचे आ जाते हैं तो उनको भी गति मिल जाती है, सीधा मनुष्य शरीर मिल जाता है, उन्हें अन्य योनियों में नहीं जाना पड़ता है। जैसे अंधे के हाथ बटेर लग गया ऐसे ही अचानक दया उनको मिल जाती है। कुछ के ऊपर दया कर भी दिया करते हैं। हमारे गुरु महाराज (बाबा जयगुरुदेव जी) के गुरु महाराज दादा गुरु (सन्त घूरेलाल जी महाराज) जाते, बहुत देर तक नदी में कुल्ला करते रहते थे। एक ने पूछा गुरुजी क्यों करते हो? नहीं बोले। एक प्रेमी ने कहा गुरु जी बता दीजिए नहीं तो यह रहस्य बना रह जाएगा। तो जब गुरु जी कुल्ला करते थे तो मछलियां दौड़ती थी खाने के लिए। कुल्ला करने पर मुंह से निकले हुए पानी को पी जाती थी, उनका भी कल्याण हो जाता था। यह प्रमाणित है कि सन्त के शरीर से जो जीव छू जाते हैं, दया कर देते हैं तो मनुष्य शरीर मिल जाता है।

मानसिक सहयोग भी फलदाई होता है:-

महाराज जी ने 2 अगस्त 2020 सायं उज्जैन आश्रम में बताया कि कोई जरूरी नहीं है कि धन और बल का ही सहयोग हो। मानसिक सहयोग भी फलदाई होता है। शुभकामनाएं ही अगर सब लोगों की लग जाए तो मंदिर जल्दी बन जाएगा। वैसे तो जितने भी सन्तमत के लोग रहे, सन्त आये, उन्होंने मनुष्य शरीर को ही मस्जिद मंदिर गुरुद्वारा चर्च बताया। इसी में खुदा भगवान के मिलने का तरीका बताया और उनके रूप को इसमें दिखाया दर्शाया।

एक ही वरदान में सब कुछ दिला दिया:-

महाराज जी ने 3 अगस्त 2022 सांय उज्जैन आश्रम में बताया कि वरदान में क्या मांगू ये सोचते हुए वो व्यक्ति सबसे पहले अपनी जन्म की अंधी मां के पास गया, पूछा मां बताओ, एक वरदान मिलेगा, क्या मांगू? मां ने कहा मेरी आंख मांग ले। बड़ी उम्मीद है मुझे तुझसे, मुझे भी दुनिया दिखा दे। फिर पिता से पूछा, पिता ने कहा धन मांग ले। धन होने से सब कुछ हो जाएगा। मेरी भी जिंदगी गरीबी में ही बीत गई। देख तो लूं कि रहीसी क्या चीज होती है। मैं भी कुछ दुनिया का सुख भोग लूं। फिर पूछने पर पत्नी ने कहा मेरी कोख सूनी है, मुझे लोग बांझ कहते हैं, शुभ काम में नहीं बुलाते। तो यह कलंक धो दो। एक पुत्र मांग लो। अब बड़े संकट में वो पड़ा। लेकिन समय सीमा में ही वरदान मिलना था तो सोचता हुआ जा रहा था कि क्या मांगे। रास्ते में महात्मा जी दिखे, श्रद्धा से पैर छुआ। कहा तू बड़ा उदास लग रहा है, क्या चिंता फिक्र है? बोला महाराज मैं बड़ा परेशान हूँ, समझ में नहीं आ रहा है कि कौन सा वरदान मांगू। कहा जब तेरे ऊपर परेशानी आई तो तूने अपने गुरु से रास्ता नहीं पूछा? अरे गुरु तो इसी बात के लिए होते हैं कि परेशानी दूर कर दे। गुरु के पास तुमको जाना चाहिए। बोला महाराज मैंने तो कोई गुरु किया ही नहीं। कहा गुरु नहीं किया? अरे तू निगुरा है। निगुरा को तो सन्त कबीर साहब ने पापी बताया है। कहा है-

निगुरा मुझको न मिले पापी मिले हजार, एक निगुरा के शीश पर लख पापी का भार:-

लाख पापों का बोझा निगुरा के सिर पर होता है। बोले तू गुरु कर ले। बुद्धिमान था, फ़ौरन उनके पैर पर गिर गया और कहा आप जैसे गुरु हमको कहां मिलेंगे? आप ही शरण में हमको ले लीजिए, आप ही मेरे गुरु बन जाइए। तब उन्होंने कहा ठीक है। अब जैसा मैं बताऊं वैसा तू जाकर के वरदान मांगना। कहना मेरा बेटा मेरे सात मंजिला मकान की छत पर सोने की छत्र के नीचे चांदी के कटोरे में दूध रोटी खाए और मेरी मां देखें। अब आप सोचो अकल कहां से मिली? वहां जहां से अकल का स्रोत निकला है यानी सन्त महात्माओं से मिली और उन्होंने एक ही वरदान में सब कुछ दिला दिया तो एक ही तीर में कई शिकार हो गए। मतलब पूरे गुरु की जरुरत हर तरह से होती है।

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