लखनऊ: मनुष्य के इस भवसागर से पार होने, जीते जी देवी-देवताओं का दर्शन करने, मुक्ति-मोक्ष प्राप्त करने का रास्ता नामदान देने के एकमात्र अधिकारी, अज्ञानता में अपना बेशकीमती मानव जीवन का समय खोने वाले मानव को वास्तविक परिणाम देने वाली असली चीज का ज्ञान कराने वाले, थ्योरी बातों ज्ञान से आगे बढ़कर प्रैक्टिकल यानी खुद अनुभव करवाने वाले, इस समय के महापुरुष, त्रिकालदर्शी, दयालु, दुःखहर्ता, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने जन्माष्टमी कार्यक्रम में उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित सन्देश में बताया कि कितनी जन्माष्टमी आपने निकाल दिया लेकिन कृष्ण को समझने की कभी कोशिश किया? समझने की जरूरत है। वह भी हमारे आपके जैसे मनुष्य शरीर में ही थे, दाढ़ी बाल था, खाते-पीते थे, वह भी उम्रदराज होकर, बुड्ढे होकर के दुनिया से गए थे। ज्यादातर उनका बाल रूप का ही फोटो, मूर्तियां मिलती हैं। लेकिन तारीफ करने वालों ने उनकी अच्छाइयों को बढ़ा-चढ़ाकर के ऐसे पेश किया कि जिनके मन में उनके प्रति श्रद्धा विश्वास नहीं था, उनके मन में भी पैदा हो गया। अब उनके नाम पर रासलीला करो, मूर्ति मंदिर बनाओ, पूजा-पाठ करो, जन्मदिन मनाओ आदि, इसी में आदमी अपना जीवन का कीमती समय निकाल दे रहा है। समझो, इस म्रत्युलोक में मनुष्य शरीर में आने वाले सभी को जाना पड़ा, ये मकान खाली करना पड़ा।

कौरव जो कहते सुई की नोक के बराबर जमीन नहीं देंगे, सोचो कुछ लेकर गए

कृष्ण को भी शरीर छोड़ना पड़ा था। हमेशा कृष्ण के साथ रहने वाले, जिनको कृष्ण ने उपदेश किया, समझाया, बताया उन पांडवों को भी जाना पड़ा। ग्यारह अक्षौहिणी सेना वाले, बाहुबली, धन-दौलत परिवार से सम्पन्न कौरवों को भी जाना पड़ा। कर्मों के अनुसार उनको भी सजा मिली। उनके शरीर को भी सजा मिली, मरने के बाद भी शरीर सड़ता रहा। इतने लोग मरे थे कि गिद्ध कौवा भी इतना नहीं खा पाते थे। सोचो, क्या आप इस संसार में हमेशा रहोगे? हमारा भी समय पूरा होगा, जाना पड़ेगा। जैसे अहंकार में सुई के नोक के बराबर जमीन देने के लिए नहीं तैयार होने वाले कौरव चले गये तो सोचो वो महल अटारी खजाना कुछ लेकर के गए? कुछ नहीं लेकर के गए। सब यही छोड़कर जाना पड़ा।

सच्चे सन्त का सतसंग न मिलने से इंसानियत खत्म, धर्म-कर्म का होता जा रहा है नाश

देखो महापुरुषों, सन्त महात्माओं फकीरों के इतिहास से तवारीख भरा पड़ा है। उसे अगर लोगों को त्योंहार पर और इसके अलावा भी बराबर सुनाया बताया जाए, जैसे पहले किस्सा कहानियां बच्चों को सुनाते बताते थे, कथाएं जगह-जगह होती रहती थी, महापुरुषों का इतिहास याद दिलाया जाता था, इसी तरह से याद दिलाया जाए, बताया जाए तो बहुत परिवर्तन आदमी के अंदर आ जाएगा, बहुत सी समस्याएं सुलझ जाएंगी। लेकिन वो न तो टीवी में दिखाया जाता है, न अखबार में लिख कर के लोगों को पढ़वाया जाता है, न कोई इस तरह के प्रवचन होते हैं तो लोगों के अंदर से इंसानियत मानवता खत्म और धर्म-कर्म का नाश होता जा रहा है।

दु:खी लोगों को सुख शांति का रास्ता बताना जरूरी है

आदमी यही सोच लेता है कि खाओ पियो मौज करो, जन्माष्टमी, रामनवमी मना लो, मूर्तियों को प्रसाद चढ़ा दो, मंदिर तीर्थों में चले जाओ तो उद्धार कल्याण हो जाएगा तो लोगों को जानकारी कराना जरूरी होता है। भारत देश सन्त महात्माओं का देश रहा है, इतिहास सन्तों से भरा पड़ा हुआ है। उनकी जीवन लीला को, बातों को सुख शांति का रास्ता पाने के लिए दु:खी लोगों को बताना जरूरी है।

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