घर्म: इस समय धरती के प्रकट सन्त, बाहरी जड़ भौतिक पूजा-पाठ से बहुत आगे प्रभु को प्राप्त करने का वो अति गोपनीय भेद खोलने वाले, शंकाओं को दूर करने वाले, पहले प्रायोगिक फिर थ्योरी करवाने वाले, प्रभु को और अंतर में अपने जलवे को दिखा कर प्रेम जगाने प्रगाढ़ करने वाले, जीवात्मा की डोर पकड़ कर खींचने वाले, खेवनहार, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि जब सन्तमत नहीं था, सन्तों का प्रादुर्भाव इस धरती पर नहीं हुआ था, केवल गुप्त सन्त थे, सतलोक का भेद जानने वाले नहीं थे, संभाल तो करते रहते थे लेकिन जब लोगों के कर्म ज्यादा खराब होने लग गए तब सतपुरुष ने अपने स्थान से अपने 16 सुतों में से जोगजीत को भेजा तब उन्होंने यहाँ आकर सारा (अंतर का) भेद खोल दिया और (लोगों को) हर तरह की जानकारी हो गई।

इस समय दया बराबर काम कर रही है

महाराज जी ने सीकर (राजस्थान) में बताया कि गुरु महाराज ने डोर लटका दिया है, समझ लो नाव लगा दिया है। लेकिन आप गुरु महाराज के नाम दानीयों को अब विश्वास के साथ उस पर बैठने की जरूरत है। और अगर नहीं बैठ पाओगे तो नाव तो चली जाएगी, फिर इंतजार करना पड़ेगा। फिर कब आती है नाव, क्या होता है, क्या पता? आपके कर्म कुछ ऐसे बन जाए कि आप फंस जाओ। दूसरा कोई आवे, दूसरा पतवार लेकर के अगर कोई नाविक आवे, आपसे कितना प्रेम करें? क्या करें? किस तरह करें? कैसे आपको तवज्जो दे? यह तो समय परिस्थिति के अनुसार आपको मालूम पड़ेगा इसीलिए अभी तो दया बराबर काम कर रही है।

पूर्ण सन्त के सतसंग में बिना पूछे शंका दूर हो जाती है

महाराज जी ने जोधपुर आश्रम में बताया कि गुरु महाराज (बाबा जयगुरुदेव जी) के सतसंग में हर किसी की शंकाएं बगैर पूछे ही दूर हो जाती थी। पहले लोग सवाल करते थे जैसे अव्वल नंबर परसेंटेज लाने, सबसे आगे बढ़ने, तरक्की की चाह रखने वाले अच्छे विद्यार्थी, एक-दूसरे से बात, डिस्कस करते रहते हैं तो भूली हुई चीज याद आ जाती है। बहुत से वक्ता (उपदेशक) भी एक दूसरे से पूछते, समझते, सुनते, ग्रहण करते रहते हैं लोगों को बताने और समझाने के लिए। तो तौर तरीके से, कोई उदाहरण देकर समझाते थे और वह उदाहरण जिसमें उन्होंने बताया समझाया उसमें भी कुछ न कुछ रहस्य और राज छोड़ कर के गए। अब लोग कह तो देते हैं लेकिन उसका मतलब लोग खूब ठीक से नहीं समझते हैं, हल्के में लेते हैं।

 

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