लखनऊ : लोक और परलोक दोनों की पूरी जानकारी रखने वाले, भेद खोलने वालें, बाहरी तकलीफों में आराम दिलाने वाले, अंतर साधना में तरक्की करवाने वाले, सबकी जान बचाने में लगे, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरू, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने भीलवाड़ा (राजस्थान) में दिए संदेश में बताया कि एक आंख अंदर जीवात्मा में है उससे ऊपरी लोकों की चीजें दिखाई पड़ती है। स्वर्ग बैकुंठ देवलोक चंद्रलोक सूर्य लोक आदि सब उससे देखा जाता है। उसको दिव्य दृष्टि, आत्म चक्षु, शिव नेत्र, थर्ड आई कहते हैं। जैसे बाहरी चमड़े के कान से बाहर की आवाज सुनाई देती है ऐसे ही एक आत्म कर्ण होता है जिससे आकाशवाणी वेदवाणी गैबी आवाज (डिवाइन) साउंड, अनहद लोग कहने लग गए। अनहद मतलब जो हृदय में अनवरत हो रहा है। ऊपरी लोकों के सब बाजे बगैर बजाए अनवरत बजते रहते हैं। यहां दुनिया में तो कोई भी बाजा हो, बजाना पड़ता है, चाहे हाथ से, लकड़ी से या बिजली से बजाओ लेकिन वो अनहद बाजे तो बजते ही रहते हैं। अंदर वाले कान से सुनाई पड़ता है।

तीसरी नाक:-

जैसे इन बाहरी दोनों नाकों से बाहर की खुशबु मिलती है ऐसे ही एक नाम अंतर जीवात्मा में है जिससे ऊपरी लोकों की खुशबू मिलती है। तब साधक मस्त हो जाता है। और वह खुशबू खत्म नहीं होती, बराबर मिलती रहती है। थोड़ा सा प्रयास किया, ऊपर की तरफ गया, बराबर खुशबू मिलती रहती है। और तरह-तरह की खुशबू इच्छा के अनुसार आती रहती है। पूरी खुशबू की लहर चलती रहती है। जैसे रातरानी के पौधे की तरफ जाओ तो बराबर खुशबू दूर तक फैलती रहती है। तो वह तीसरी अंदर वाली जीवात्मा की नाक से अंतर में खुशबु मिलती है।

जयगुरुदेव नाम की आजमाइश करके देख लो, तकलीफ में आराम मिलता है या नहीं:-

आपसे आपके समाज, जाति, संगठन, परिवार, रिश्तेदार आदि कोई भी संबंध से जुड़े लोगों को आपके रिश्ते से फायदा हो सकता है इसीलिए जयगुरुदेव नाम के बारे में बता देता हूं। सबको बता देना, किसी के भी यहां तकलीफ बीमारी टेंशन रुपया पैसा में बरकत न होना आदि जो भी तकलीफ रहती है, वो शाकाहारी नशा मुक्त रहकर के अपने-अपने घरों में सुबह-शाम जयगुरुदेव नाम की ध्वनि बोलना शुरू कर दें, देखो फायदा होता है या नहीं होता है। आजमाइश कर के देख लो।

शिव तांडव शुरू न होने पाए:-

महाराज जी ने लखनऊ में बताया कि शिव का तांडव शुरू न होने पाए। तांडव कभी भी शुरू हो सकता है। इस समय की परिस्थितियों के हिसाब से आदमी विनाश के कगार पर खड़ा हुआ है। भारत ही नहीं, पूरा विश्व बारूद के ढेर पर खड़ा हुआ है। कभी भी आग लग जाए, ध्वस्त हो जाए। इसीलिए बहुत ही सजग रहने की जरूरत है। प्रेमियों! ज्यादा लोभ लालच में मत पड़ो। मेहनत और ईमानदारी की कमाई पर भरोसा रखो। उसमें बरकत मिलेगी। इसमें किसान, व्यापारी, अधिकारी, कर्मचारी, राजनेता, हर तरह के लोग यहां बैठे हुए हैं। आप अपने हिसाब से जहां पर हो, उस धर्म का पालन करो। गृहस्थ हो तो गृहस्थ धर्म का पालन करो। सन्यासी हो तो सन्यास धर्म का पालन करो।

काशी विश्वनाथ नाम क्यों पड़ा? शिव जटा में गंगा कौन सी है:-

विश्वनाथ का यह स्थान काशी विश्वनाथ, यह कैसे मशहूर हुआ? कैसे इसका महत्व हुआ? यहां पर दर्शन हुआ उनको, जिन्होंने इस जगह को स्थापित किया। विश्वनाथ नाम क्यों पड़ा? तीनों पुत्रों में से शिव सबसे छोटे पुत्र हैं। इनका लोक, ब्रह्मा विष्णु आद्या में सबसे नीचे का लोक हैं। इन्हीं के ऊपर एक तरह से सुरत की धारें आती है, ऊपर से उतारी जाती है तो इनके ऊपर आती है। जैसे कोई बैठा रहेगा तो जब ऊपर से कोई चीज गिरेगी तो उसके सिर पर गिरेगी। तो पूरी दुनिया में फैलाने के लिए इनके सिर पर सुरत की धारें उतरी। उसी को लोगों ने कहा इनके सिर में जटा में गंगा है। गंगा नहीं वह सुरतें हैं। सुरतें फिर इनके द्वारा नीचे फैलाई गई तो यह सुरतों के हो गए मालिक। अब जब जीवों का समय पूरा होता है तो यह उनको समेट लेते हैं। इन्होने अपने लोगों को नीचे के लोकों के मालिक बना दिया जैसे 33 करोड़ दुर्गा, 10 करोड़ शंभू बने, यह जो तारा मंडल सूर्य मंडल सूर्य लोक चन्द्रमा लोक आदि बने। इनके भी जो राजा हैं ऊपर के स्थान के राजा इंद्र है। मूलाधार चक्र, गुदा चक्र पर गणेश जी का लोगों ने दर्शन किया तो बोले की गणेश जी प्रथम देवता है। तो यह अपने-अपने हिसाब से जो लोग जहां तक पहुंचे, जिनका दर्शन किया, उनको श्रेष्ठ माना। इंद्र और उनकी पत्नी सची का दर्शन भी लोगों को मूलाधार चक्र पर ही हो गया। लेकिन शिवजी ऊपर के लोक में है, इनकी जो छाया, रेंज, परछाई पड़ती है वह मनुष्य के इंद्री चक्र पर पड़ती है। यहां पर उन्होंने जब देखा तो वो जगह पर यानी यह स्थान इसलिए मशहूर हो गया।

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