लखनऊ : विश्व विख्यात निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, उज्जैन के परम सन्त बाबा उमाकान्त जी महाराज ने परेड़ मैदान प्रयागराज में शिवरात्रि कार्यक्रम के अंतिम दिन दिए अपने समापन संदेश में बताया कि ध्यान भजन सुमिरन में मन न लगे तो समझो की कर्म हैं। शरीर से सेवा करके कर्म काटने की जरूरत है। तन मन धन की सेवा जो भी जैसी भी है करना चाहिए। आप सुनते हो, लेकिन भूल जाते हो। कुछ चीजें भूलने की नहीं होती। अपना घर आदि तो नहीं भूलते। न याद रह पावे तो इसी धार्मिक स्थल पर गुरु महाराज से प्रार्थना करो की हम आपके मिशन में मददगार हो जाएँ, आप इस शरीर से सेवा ले लो, हमारी मेहनत की कमाई का कुछ अंश आप इस काम मे लगवा लो, हम पर दया करो। याद रखना कि त्रिवेणी संगम पर गुरु से दया मांगी थी। मैं आध्यात्मिक दृष्टि से आपको अपना बच्चा समझता हूँ तो बच्चे को सिखाना समझाना पड़ता है।
मेरा निजी अनुभव है कि गुरु के मिशन में लगने पर मुझे कल जिस चीज की जरूरत पड़ती वो एक दिन पहले हाजिर हो जाती। आप कुछ लोगों की बुद्धि तेज है, बड़े पद पर हो, धन-सम्मान है तो संगत की सेवा में भी उसे लगाओ, सतयुग लाने में लगो। मेले बहुत लगते हैं लेकिन कई जगहों पर युवाओं को नशेड़ी बना देते हैं। शिव कर्मों के अनुसार लोगों को बहुत तरीके से सजा देंगे फिर मनुष्य पुकारेगा, माफी मांगेगा लेकिन तब तक बहुत देर हो जाएगी। चक्रों के भेदन से तो केवल शिव की, देवताओं की छाया दिखती है, सीधा दर्शन का तरीका अलग है। शिव नेत्र को सहज में खोल कर शिव को देखा जा सकता है, जानकार गुरु ही बता सकते हैं। सतसंग में इसलिए लाया जाता है कि सीखें कैसे रहना है। मन को पढ़ाई में भी रोकना रहता है, और ध्यान भजन साधना में भी। सतसंग में नहीं लाते हो, बच्चा फेल हो जाता है, औरत अपने असली रूप में आ जाती है, पति अपना रूप दिखाता है तो तकलीफ हो जाती है।