लखनऊ : जो अपने गुरु के आदेश से एक इंच भी अलग नहीं हुए, जो अपने गुरु को सदैव हाजिर-नाजिर समझते हैं, जो इस समय के जीवित पूरे समरथ सन्त सतगुरु होने के नाते सभी जीवों की मदद कर सकते हैं, कर रहे हैं, समाज में भौतिक तरक्की पाने के सूत्र भी बताने वाले, अपने बच्चों से गलती होने पर भी बार-बार माफ़ करने वाले परम दयालु, दुःखहर्ता, त्रिकालदर्शी, अन्तर्यामी, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने धारूहेड़ा, रेवाड़ी (हरियाणा) में दिए संदेश में बताया कि जिसके अंग-अंग में गुरु समाए हुए रहते हैं, उसकी गुरु के प्रति एक रस भक्ति होती है। गुरु कैसे समायेगे अंग-अंग में? गुरु मनुष्य शरीर में रहते हैं, गुरु की दया (उनमें) समाई हुई रहती है, हर तरह का भौतिक और आध्यात्मिक अनुभव उनको रहता है।

वो लोग हमेशा जुड़े रहते हैं जो गुरु के आदेश पर मरने-मिटने के लिए तैयार हैं, जिनको गुरु की दया अंदर में मिल गई है। पत्थर से मारने पर भी वह नहीं हट सकते हैं। गुरु की दया ही मिली हुई थी ईसा मसीह को, मीरा को, शम्स तबरेज को जिसकी वजह से पत्थर खा लिया, सूली पर लटके, मार दिए गए, दीवारों में चुनवा दिए गए। गुरु की दया किसको मिलती है? जो गुरु को हमेशा मस्तक पर सवार और हाजिर नाजिर समझते हैं। मनुष्य शरीर में ही गुरु मिलते हैं। जो उस समय पर ऊपर से पावर लेकर के आते हैं, वह गुरु हमेशा रहते हैं। वह जब मिल जाते हैं, एक जगह पर रहते हैं लेकिन उनकी दया, उनकी याद हमेशा जिसके सर पर रहती है, हमेशा वह समझते हैं कि जो मैं कर रहा हूं, गुरु देख रहे हैं, जो मैं कह रहा हूं, गुरु उसे सुन रहे हैं, जो यह भाव रखते हैं, वह हमेशा एकरस रहते हैं। उनको काल कभी रोके नहीं, देवे राह बताय। भौतिक कामों में भी काल नहीं रोकता है और अंदर में भी गुरु की दया मिलती है।

 

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