धर्म कर्म : सब जीवों के पिता सतपुरुष के साक्षात अवतार, जिनमें पूर्व के सभी सन्त और उनकी दया समाई हुई हैं, इस अनमोल मनुष्य शरीर में छुपे सीक्रेट खजाने को प्राप्त करने की चाबी बताने वाले, अपने शिष्यों की सब तरह से संभाल करने वाले, काल माया से बचाने वाले, पूरे सभी प्रकार से समरथ सन्त सतगुरु, परम दयालु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने होली कार्यक्रम उज्जैन आश्रम में दिए संदेश में बताया कि सन्तमत का सतसंग मिलने पर ज्ञान होता है नहीं तो मनुष्य अपनी समय परिस्तिथि परिवार वातावरण के अनुसार चले आ रहे देवी-देवताओं का ही नाम लेता हुआ (इस दुनिया से) चला जाता है और आत्मा को परमात्मा से मिलाने का असली काम नहीं हो पाता। सतसंग उसे कहते हैं जहां सतलोक सतपुरुष का कीर्तन होता है। कीर्तन यानी कीर्ति। कीर्ति, किये हुए काम को काल नहीं खा सकता है। उपरी लोकों के वासियों देवी-देवताओं को भी अपने कल्याण के लिए मनुष्य शरीर में आना पड़ता है, तत्व ज्यादा हैं लेकिन उनके शरीर से उपर जाने का रास्ता नहीं है।

माताओं बहनों के लिए सन्देश:-

सतसंगी माताओं बहनों को बच्चा पेट में आने पर आचार-विचार, संयम-नियम का पालन करना चाहिए नहीं तो बच्चे खंडित हो जाते हैं। भजन करती रहोगी तो अच्छे निकलते हैं नहीं तो बिगड़ जाते हैं, उद्दंड हो जाते हैं। आप लोग बच्चों को सतसंग में कम लाते हो। आये दिन सुनने को मिलता है कि बच्चा बिगड़ रहा, बच्ची बिगड़ रही। ध्यान रखो।

अपने उसूलों के पक्के रहो, प्रभु पर विश्वास रखो, वोही देता है:-

मनुष्य तो संग दोष से अपने रास्ते से अलग हो जाता है, अपने उसूल छोड़ देता है लेकिन जानवर अपनी जगह मजबूत होते हैं। आदमी दुसरे स्थान पर जाकर संग दोष में आकर मां-बाप के दिए संस्कार को ख़त्म कर देता है। उस प्रभु पर से विश्वास ख़त्म कर देता है जो सबको देता है। कभी भी अपने उसूल से अलग नहीं होना चाहिए। हमेशा अपने उसूल पर रहना चाहिए।

 

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