धर्म-कर्म : मृत्युलोक और नरकों में घोर दुःख पाती अपनी अंश जीवात्मा के दुःख से दुःखी होकर सन्त रूप होए जग में आये स्वयं सतपुरुष, अपने अपनाये हुए जीवों के न केवल बाहरी शारिरिक मानसिक बल्कि आध्यात्मिक दुःख को भी दूर करने वाले, इस कलयुग में सबसे सरल शब्द नाम योग साधना करवा कर जीवात्मा को अंतर में ले चलने वाले, वहां की अदभुत रचना को कभी-कभी मौज में आकर बता देने खोल देने वाले, उसका अनुभव करवा देने वाले, मौजूदा वक़्त के महापुरुष सन्त सतगुरु दुःखहर्ता त्रिकालदर्शी परम दयालु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बावल आश्रम, रेवाड़ी (हरियाणा) में दिए संदेश में बताया कि बगैर गुरु की दया के सेवा नहीं मिलती है।

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शरीर छोड़ने के बाद भी सतगुरु अपनाये जीवों को पार करने में ज्यादा समय नहीं लेते, एक-दो जन्म बस। गुरु भाई का रिश्ता बहुत बड़ा, अंतर में भी मिलते पहचानते हैं। मानसरोवर में स्नान करने के बाद स्त्री-पुरुष का भेद खत्म और जीवात्मा निर्मल हो जाती है। महाराज जी कहते हैं की, 84 लाख योनियों में केवल मनुष्य ही ऐसा है जो परोपकार कर सकता है। अंतर में गुरु के पैर के अंगूठे के अगले हिस्से को याद करते ही दिव्य दृष्टि खुल जाए तो यह सच्चा गुरु होता है। अगर सतगुरु की दया हो जाए तो कई जन्मों का कर्म-कर्जा अदा हो सकता हैं।

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