धर्म-कर्म : ऐसा उपाय बताने वाले जिससे आत्मा के साथ-साथ दुनिया के भी सभी काम पूरे हो जाए, गुरु को जल्दी खुश करने के तरीके बताने वाले, थ्योरी से ज्यादा प्रैक्टिकल पर जोर देने वाले, अंतर के गुप्त भेद को इशारों में बताने वाले, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, परम दयालु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने उज्जैन आश्रम में दिए संदेश में प्रार्थना और साधना के बारे में बताया कि प्रार्थना बोलने से मन स्थिर होता है। ऐसे बोलो जिससे मालिक के प्रति प्रेम पैदा हो। गुरु ही सब कुछ होते हैं। सबसे पहले गुरु को ही खुश किया जाता है।

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महाराज जी कहते हैं की, सुरत को राधा और सतपुरुष को स्वामी कहा गया है। मानसरोवर में स्नान करके जीवात्मा हंस स्वरूप हो जाती है तब सतदेश से जीवात्माएं आकर पूरी सफाई करने में मदद करती है और स्वागत के साथ ले जाती है। ये सन्तमत की गहरी साधना ये सब सुनने से नहीं, करने से होगा। जैसे बीमा एजेंट को, उसके बच्चों को आगे भी कमीशन मिलता रहता है ऐसे ही लोगों को परमार्थी लाभ दिलाने वालों को भी लाभ मिलता रहता है। महाराज जी कहते हैं की, शिव नेत्र सबके पास है। लेकिन समरथ गुरु की दया से ही वह खुल सकता है। सन्त कोई दाढ़ी बाल का नाम नहीं होता है। सन्त वह होता है, जिसके अंदर परमात्म शक्ति आ जाती है। मांस, मछली, अंडे, शराब व तेज नशों की चीजों का सेवन करने वाला स्वप्न में भी परमात्मा को नहीं देख सकता है और न ही उनकी शक्ति पा सकता है।

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