धर्म कर्म: बाबा उमाकान्त जी ने जयपुर राजस्थान में एक प्रसंग के दौरान बताया कि गुरुजी शाम को जब निकले तब राजा ने पुन: प्रणाम किया। फिर (गुरूजी) उधर मुंह कर लिए। तब बोला महाराज दया करो। कोई ध्यान नहीं दिए। कभी ऐसा भी होता है किसी से नाराज हो जाओ तो फिर उसको ग्लानी होती है, मेरे से कोई गलती बन गई है इसलिए नहीं बोल रहे हैं। और अगर ऐसे ही बोल दो तो उस गलती पर ज्यादा ध्यान नहीं देता है।
ज्यादा टाइट हो जाओ तो एक दिन बोलना ही बंद कर दो फिर वह अपनी गलतियों को देखने लग जाता है तो फिर गुरूजी नहीं बोले। दूसरे दिन रात को फिर सोचता रहा कि मुझसे क्या गलती बन गई, क्या गलती बन गई। सुबह फिर ध्यान नहीं दिया। जब शाम का सतसंग सुना तब समझा कि मैं छोटी चीज में फंस गया। गुरु महाराज बताया करते थे, बड़ी चीज चाहो। दुनिया बनाने वाले को ही तुम प्राप्त कर लो। पारस पत्थर जिसके हाथ में है वह तुम ले लो तो तुम्हारा लोहा, सोना हो जाएगा।