धर्म- कर्म: अंतर साधना में तरक्की देने वाले, मन और इन्द्रियों को वश में करने का तरीका बताने वाले, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, परम दयालु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी ने अपने संदेश में बताया कि कर्मों का जब से विधान बना, जीव फंसने लग गए। सुरत नीचे ज्यादा नहीं उतरती है, कभी-कभी कंठ चक्र, आद्या महाशक्ति के स्थान तक आती है। मन द्वारा सुरत के साथ मिलकर रचना करने पर सपने आते हैं। 16 तरह के सपने होते हैं।

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महाराज जी ने बताया की, साधारण जीव की क्या औकात कि वो पार जा सके लेकिन जब गुरु की दया हो जाती है तो मूक बोलने लगता है, अपंग पहाड़ चढ़ जाता है। जीवात्मा के लिए कहा गया। इसके कोई हाथ पैर तो है नहीं लेकिन दया होने पर वह ऊपर चढ़ जाती है। सुरत को जब सतगुरु खींचते हैं तब कोई रुकावट नहीं आती है। नहीं तो साधकों से पूछो। वैसे तो ये बताते नहीं लेकिन जिसके पास माल ज्यादा इकट्ठा हो जाता है, वह थोड़ा बहुत लुटा भी देता है तो उससे लिए फर्क नहीं पड़ता है। ऐसे ही आध्यात्मिक शक्ति जब कुछ लोगों के पास आ जाती है तो थोड़ा बहुत पूछोगे तो बता देंगे। तो बताते हैं, पूछोगे तो बताएंगे।

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