धर्म-कर्म: साधना में काल के हमले से बचने का तरीका अपने सतसंग में बताने वाले, मनुष्य शरीर में आये हुए इस समय के युगपुरुष, परम दयालु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी महाराज ने अपने संदेश में बताया यह जीवात्मा निकलकर ऊपर जैसे ही बढ़ी, इस जड़ को छोड़ी, गांठ जैसे ही खुली, अंदर के पिंडी दसवां द्वार से जैसे ही निकली तैसे ही सबका हमला शुरू हो जाता है। रिद्धि सिद्धि कामधेनु कल्पवृक्ष अरुणा गरिमा महिमा लघुमा यह सब सिद्धियां आकर ऐसे खड़ी हो जाती है कि रुपैया पैसा धन मान प्रतिष्ठा ले लो, लौट जाओ, मुर्दा को छूओगे तो वह भी जिंदा हो जाएगा। अब जो उसमें फंस गया, ले लिया, वह आगे नहीं बढ़ पाता है।
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सतसंग इसलिए सुनाया जाता है कि छोटी चीजों में मत फंसो। छोटी चीज मत मांगो, बड़ी चीज चाहो। जो याद रखता है तो बाधाएं हट जाती है। भीम काय शरीर वाला आकर खड़ा हो जाता है, देखते ही डर लगता है, कहता है कहां जा रहे हो? जैसे ही गुरु को याद करते हो तैसे ही वह हट जाते हैं। गुरु प्रकट होते हैं। गुरु हाड मांस के शरीर का नाम नहीं है, गुरु एक पावर शक्ति होती है, और मालिक के आदेश से इस शरीर में रहती है। जिसको हुकुम होता है वह काम करते हैं और जब शरीर छूटता है तो वह पावर किसी दूसरे को दे जाते हैं लेकिन काम उनसे बराबर कराते रहते हैं। सन्त अपने जानशीन में समा जाते हैं।