धर्म-कर्म: जीव के जन्म-जन्मान्तर के जमा कर्मों को ख़त्म करने वाले, इस वक्त के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, परम दयालु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी महाराज ने अपने संदेश में बताया कि गुरु महाराज भी कहते थे कि चिड़िया कि तरह से उड़ जाओ। और जब तक उम्र है लेना-देना जल्दी से अदा कर लो। किसका? परिवार वालों का, रिश्तेदारों पत्नी, पति, पुत्र, दोस्त आदि का लेना देना होता है। कोई एक गिलास पानी पिला दिया तो समझ लो आपको भी (उसे) पिलाना पड़ेगा, आपको किसी न किसी रूप में उसको देना पड़ेगा। उसको भी अदा कर लो। निकल चलो (इस दुःख के संसार से)। (यह) देसवा वीराना है। दूसरे का, काल भगवान का देश है। आपका देश नहीं है।

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महाराज जी कहते हैं, योग करो, साधना करो। अपने देश अपने घर की बराबर याद बनाए रखो कि हमको जाना है, वहां हमको पहुंचना है। हमारे प्रियतम, पति, भगवान, पिता अलग हैं। यह भगवान, मिट्टी-पत्थर का भगवान, यह पेड़-पौधे का भगवान, जिसको आपने भगवान मान लिया, गंगा-जमुना जिसको आपने मां मान लिया, न तो यह आपकी मां है न यह आपके भगवान हैं और न जिनको पिता-पुत्र-पति माना, यह कोई कुछ नहीं। यह तो थोड़े समय का रिश्ता है। यह तो लेना-देना है। रिश्ता, कर्तव्य आप निभा लो। कर्तव्य का पालन कर लो। उसकी मनाही नहीं है। लेना-देना न रह जाए। आशा आपकी सब पूरी हो जाए। आप जरूरत भर की चीजों का उपयोग, जो सन्तमत के हिसाब से जायज है, उनका आप कर लो। किसी चीज की आशा न रह जाए। उसके बाद (इस मृत्यु लोक से) निकल चलो। फिर लौटकर के इस दु:ख के संसार में मत आओ।

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