धर्म-कर्म : सन्तमत से लोगों को स्थाई और हर तरह का फायदा लाभ दिलाने वाले, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, परम दयालु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी महाराज ने उज्जैन आश्रम में दिए संदेश में बताया कि चाहे नए हो या पुराने हो, सुमिरन करना जिसको नहीं आता है, वो यहां लगातार (सुमिरन) करने वाले पुराने लोगों से पूछ लो। जिनको सुमिरन वगेरह करना आता है, ध्यान भजन करते हो, आप इन लोगों से पूछ लो कि आप (नये) लोग (सुमिरन ध्यान भजन) करते हो या नहीं। और करते हो तो कैसे करते हो। क्योंकि गलत तरीके से सुमिरन करने पर सुमिरन कबूल नहीं होता है, माना नहीं जाता है। जैसे किसी का नाम सुरेश है और आप महेश महेश बुलाओ तो बोलेगा? (नहीं बोलेगा)। तो समझ लो। जैसे वह (पुराने अभ्यासी) करते हैं उसी तरह से करो। एक से पूछो, दो से पूछो। कभी ऐसा भी होता है कि जो बहुत पुराना होता है उनको भी रूप नाम ठीक से याद नहीं होता है।

बराबर सुमिरन ध्यान भजन करते रहोगे तो सुखी रहोगे:-

महाराज जी ने बताया कि (सतसंग वचन) सुनो और भूल मत जाओ। देखो! हम बहुत सुनाए। सुनाने का कितना असर पड़ा- यह मैं अब देखना चाहता हूं कि आप सुनते तो हो लेकिन सुन कर चले जाते हो, करते नहीं हो। आपको करना है। आदेश का पालन करना है। नये लोग जो बैठने लगे, उनको फायदा दिखाई पड़ रहा है। पुराने लोगों से ज्यादा दिख रहा है। उन पर गुरु महाराज की दया ज्यादा हो रही है। इसीलिए आप लोग ध्यान भजन सुमिरन बराबर करते रहो। मुक्ति मोक्ष का यही सीधा सरल रास्ता है। जब तक शरीर में, इस मृत्युलोक में रहोगे, यदि सुमिरन ध्यान भजन लगातार करते रहो तब तक सुखी रहोगे।

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