धर्म-कर्म : बार-बार इशारे में समय के अति महत्वपूर्ण सेवा के मौके का महत्त्व समझाने वाले, अपने गुरु के पक्के भक्त, गुरु के ऋण को चुकाने का तरीका बताने वाले, जिनको खुश करने पर काल, कर्म, माया, विधान आदि-आदि किसी का भी कोई जोर नहीं चल पाता है, ऐसे इस समय के पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी महाराज ने बताया कि कोई भी हो, जब भी आते हैं तो दुनिया का भी कुछ न कुछ काम करते-कराते हैं। जैसे गुरु महाराज ने अपने गुरु महाराज का मंदिर बनवाया, जगह जगह पर यज्ञ किए तमाम गाड़ियों, साइकिल की यात्राएं निकाली, तमाम सम्मेलन करवाये। इस तरह के कुछ न कुछ काम महात्मा जीवों को खींचने, कल्याण के लिए करते रहते हैं।
गुरु महाराज का लक्ष्य जीवों को निज घर पहुंचाने का था
गुरु महाराज ने अपने गुरु का चिन्ह बनाया था। उसी तरह से अपने लोगों के गुरु का चिन्ह बावल रेवाड़ी हरियाणा में हाइवे के नजदीक बन रहा है। वह अगर जल्दी से बनकर तैयार हो जाए, दया-दुआ अभी लोगों को गुरु महाराज के उस स्थान से मिलने लग जाए तो बहुत से जीवों का भला हो जाएगा। बहुत से लोगों के दु:ख कष्ट जब दूर होंगे, उनके शरीर को सुख मिलेगा तब आत्म सुख की भी इच्छा करेंगे कि आत्मा को भी सुख मिल जाए तो वह भी (अपने आत्म कल्याण का) काम करने लग जाएंगे, नामदान लेकर के सुमिरन, ध्यान, भजन करने लग जाएंगे। गुरु महाराज का जो लक्ष्य रहा है, जीवों को पार करने का- हम आये वही देश से जहां तुम्हारा धाम। तुमको घर पहुंचावना एक हमारा काम।। जीवों को अपने घर पहुंचाने का जो लक्ष्य गुरु महाराज का रहा है, प्रेमियों वो पूरा हो जाएगा।