धर्म-कर्म: अनमोल मनुष्य जीवन क्यों मिला है, इसका क्या उद्देश्य है, कैसे पूरा होगा, कैसे प्रभु मिलेंगे, इसमें क्या-क्या बाधा आती है, सब तरह का ज्ञान अपने सतसंग में करा देने वाले, भक्त की संभाल यहां और वहां करने वाले,पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी ने बताया कि सांसों की पूंजी की ही कीमत होती है। सांसों की पूंजी (प्रभु का सच्चा) भजन करने के लिए, आत्मा के कल्याण के लिए मिली। इन सांसों की पूंजी को बर्बाद करने वाले यह सब लोग हैं जिनको आदमी अपना, मददगार समझता है कि यह हमारे हर मुसीबत में, जवानी में चाहे बुढ़ापे में मददगार होंगे? यह हमारे पुत्र, परिवार, पति-पत्नी है। यह सब लोग क्या करते हैं? यह लोग दुश्मन का काम करते हैं। दुश्मन क्या काम करता हैं ? दुश्मन खत्म करने का काम करता है। दुश्मन धन, प्रतिष्ठा, राज्य को खत्म करने की सोचता, शरीर को भी कटवा-मरवा देता है। जैसे कहते हैं, ज्यादा मिठास में कीड़े पड़ जाते हैं। ऐसे ही देखने में तो मीठा लगता है लेकिन इसी में कीड़े पड़ जाते हैं और ये कोई काम के नहीं होते।

भौतिक ज्ञान वाले आध्यात्मिक ज्ञान को क्यों नहीं समझ पाते हैं? 

सन्तों ने आध्यात्मिक दृष्टिकोण से सब धार्मिक किताबें लिखी लेकिन भौतिक विद्या वाले भौतिक ज्ञान वाले भौतिकता में अकल लगाने वाले इन्ही किताबों, चौपाइयों, श्लोकों को नहीं समझ पाते हैं और अर्थ का अनर्थ कर देते हैं। और जब समझ नहीं पाएंगे, कोई भेदी समझाने वाला नहीं मिला तो ऐसे ही भटकते रह जाते हैं, जीवन में निराशा ही हाथ आती है। जैसे कहा गया है- करले निज काज जवानी में, इस दो दिन की जिंदगानी में। एक दिन यह जवानी खत्म हो जाएगी। अपना असला काम, प्रभु की प्राप्ति का, जीवात्मा को निजात मुक्ति दिलाने का है, वह काम कर ले नहीं तो निराशा हाथ आएगी। बुढ़ापे में कुछ नहीं हो पाता है।

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