धर्म-कर्म: अनमोल मनुष्य जीवन क्यों मिला है, इसका क्या उद्देश्य है, कैसे पूरा होगा, कैसे प्रभु मिलेंगे, इसमें क्या-क्या बाधा आती है, सब तरह का ज्ञान अपने सतसंग में करा देने वाले, भक्त की संभाल यहां और वहां करने वाले, सर्व व्यापक, सर्व समर्थ, वक़्त के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, दीनबंधु, उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी ने लखनऊ यूपी में दिए संदेश में बताया कि सांसों की पूंजी की ही कीमत होती है। सांसों की पूंजी (प्रभु का सच्चा) भजन करने के लिए, आत्मा के कल्याण के लिए मिली।
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देखो लोग इन सांसों की पूंजी को कैसे-कैसे कहां खर्च कर देते हैं? इन सांसों की पूंजी को बर्बाद करने वाले यह सब लोग हैं जिनको आदमी अपना, मददगार समझता है कि यह हमारे हर मुसीबत में, जवानी में चाहे बुढ़ापे में मददगार होंगे? यह हमारे पुत्र, परिवार, पति-पत्नी है। यह सब लोग क्या करते हैं? यह लोग दुश्मन का काम करते हैं। दुश्मन क्या काम करता हैं ? दुश्मन खत्म करने का काम करता है। दुश्मन धन, प्रतिष्ठा, राज्य को खत्म करने की सोचता, शरीर को भी कटवा-मरवा देता है। जैसे कहते हैं, ज्यादा मिठास में कीड़े पड़ जाते हैं। ऐसे ही देखने में तो मीठा लगता है लेकिन इसी में कीड़े पड़ जाते हैं और ये कोई काम के नहीं होते। यह जो पुत्र, परिवार, धन-दौलत, ऐश-आराम की दुनिया की चीजें हैं, यह दुश्मन है क्योंकि इसी में मन लगा हुआ है और इसी में यह समय निकला जा रहा। ये उम्र, सांसो की पूंजी को खत्म करने में लगे हुए हैं। यह विधि का विधान है कि जो मनुष्य शरीर में आता है, उसको शरीर छोड़ना पड़ता है। इसलिए अपना असला काम पहले करो।