धर्म-कर्म: बाबा उमाकांत जी महाराज ने उज्जैन आश्रम पर बताया कि काम, क्रोध, लोभ, मोह ,अहंकार, रजोगुण, तमोगुण ,सतोगुण साधकों के अंदर तेज होते हैं। यह सब कैसे आते हैं? यह उसके खान-पान, आहार-व्यवहार, चाल-चलन, आचार-विचार पर निर्भर करता है। इसलिए कहा गया परमार्थी को बहुत होशियार, सजग रहना चाहिए, फूंक-फूंक कर कदम रखना चाहिए।

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लेकिन जब सतसंगी नाम दान ले लेते हैं, सतसंग में सुना करते हैं कि गुरु के हाथ में सुरत की डोर चली गई, अब वह संभाल करेंगे, अब हमारा काल क्या कर पाएगा, बस निश्चिंत हो जाते हैं। तब उसमें और भी गलतियां बनने लग जाती है। जैसे अपने पैरों के बल चलता बच्चा लड़खड़ा कर गिरने लगे लेकिन बाप हाथ पकड़ लेता है। बच्चा कितना भी मचले, बाप उसकी संभाल करता है। ऐसे ही (सतसंगी भी) सोच लेते हैं और उसमें कभी धोखा भी हो जाता है। कभी उंगली ढीली पड़ गई, पिता का हाथ ढीला पड गया तो गिर जाएगा। इसलिए प्रेमियों बहुत संभाल कर के चलने की जरूरत है। यह ठगों का संसार है। निरंजन भगवान ने इस तरह का जाल पसार दिया है कि आप कहीं भी गिर, फिसल सकते हो। मुख्य रूप से तीन चीजों से बचना चाहिए- स्थान दोष, संग दोष और अन्न दोष।

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