धर्म-कर्म: निजधामवासी बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, भक्तों पर दया लुटाने के, तकलीफों में आराम दिलाने के, सही जगह धन को खर्च करवा कर आने वाले बड़े संकट से बचाने के नित नये आसान तरीके खोजने वाले, नाम रूपी मणि अंतर में प्रकट करवाने वाले, दया के सागर, गोविंद का भेद बताने वाले, वक़्त के पूरे समरथ सन्त सतगुरु, त्रिकालदर्शी, उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी महाराज ने बताया कि दुनिया की छोटी-छोटी चीजें तो बहुत जगह मिल जाती हैं।

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जैसे छोटे बाजार में साग सब्जी, परचून किराने का सामान छोटे-छोटे बाजारों में भी मिल जाता है। लेकिन वहां सोना या हीरा नहीं मिल सकता है। वह तो बड़ी जगह पर ही मिलेगा। ऐसे ही छोटी-छोटी चीजें, देखो लोगों ने मान्यता दे दिया कि यहां पूजा होती है, यहां लोग आते हैं, यह तीर्थ स्थान है तो छोटी चीजें वहां भी मिल जाती हैं लेकिन यह बड़ी चीज, बड़ी दौलत, जैसे कहते हैं कि घोड़ा घुड़साली में ही बिकता है, जौहरी के दुकान पर ही हीरा मोती मिलता है, ऐसे ही यह बिरले ही जगह पर मिलता है। जहां सन्तों का आश्रम, सन्त होते हैं, जो हमेशा इस धरती पर रहे, तो वहां मिलता है। अब वह हीरा है क्या? वही हीरा (प्रभु की अंश जीवात्मा ) इस शरीर के अंदर है, जिससे शरीर को भी हीरा कहां गया। तेरी हीरा जैसी काया तो जल जाएगी मना। तो यह हीरा कहां मिलेगा? कैसे प्रभु का दर्शन होगा, हीरा दिखाई पड़ेगा?

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