धर्म-कर्म : अपने भक्तों के लिए विधि के विधान को भी टाल देने वाले, जो प्रारब्ध में नहीं है उसे भी अब तो रूटीन में देने वाले, वक़्त के पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया कि सन्तों कि दया हो जाए तो विधि का विधान भी टल जाता है।
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जैसे कर्मों के अनुसार जीवात्मा पेड़ की योनी में बंद कर दी गयी और अगर सन्त ने उसका दातुन कर लिया, फल खा लिया तो चौरासी लाख योनियों में से बची हुई योनियों में नहीं जाना पड़ेगा और अगला जनम मनुष्य का मिल जायेगा। काल भी सन्तों की इच्छा को टाल नहीं सकता है। जब भजन, ध्यान ,सुमिरन करने लगता है तब कर्म जलते हैं और तकलीफें अपने आप अचानक खत्म हो जाती है। गुरु से बराबर प्रार्थना करनी चाहिए कि हमारे तन मन धन से सेवा ले लो तब वह आपसे करवा लेंगे, आप स्वयं नहीं कर पाओगे। पांच सिद्धि नौ निधि, सब हाथ जोड़कर के साधकों के, सन्तों के प्रिय जीवों के सामने खड़ी रहती है कि हुकुम करिए, सेवा का मौका दीजिए। तो सेवा और भजन से जी नहीं चुराना चाहिए और दोनों काम बराबर करना चाहिए।