धर्म-कर्म: दिन दुनी रात चौगुनी ध्यात्मिक तरक्की का उपाय बताने वाले, जैसी इनसे प्रार्थना कि जाए वैसी दया करने वाले, बार-बार इशारा देने वाले कि जल्दी से कैसे गुरु से दया ली जा सकती है, इस समय के युगपुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी महाराज ने बताया कि, ध्यान में दिखाई और भजन में सुनाई नहीं पड़ता है, तरक्की नहीं होती है तो उसका क्या कारण है? कारण यही है कि दूसरे को भजन नहीं करा पाते हो, दूसरे को नाम दान नहीं दिला पाते हो, दूसरे को सतसंग में नहीं ला पाते हो इसीलिए आपको भजन में तरक्की नहीं होती है। भजन में अंतर मुख नहीं हो पाते हो, बाहर मुखी पूजा-पाठ में लगे रहते हो तो आत्मा को सुख-शांति नहीं मिल पाती है, इसलिए परेशानी रहती है। कहने का मतलब यह है कि जीवों को वहां पहुंचना चाहिए जहां सतसंग, नाम दान होता है। लोगों को निर्मल करके, शाकाहारी नशा मुक्त बना करके, समझा कर के, वहां पहुंचाना चाहिए।

ज्ञान का पिटारा कैसे खुलता है:-

महाराज जी ने उज्जैन में बताया कि, कढ़े लोग ऐसी बात बोल देते हैं जैसा गुरु महाराज ने बोला था जो पढ़े-लिखे लोगों को प्रभावित कर जाते हैं। लेकिन लोग निराश हो जाते हैं कि हम पढ़े-लिखे नहीं हैं, हम क्या समझा पाएंगे। लेकिन यह भूल जाते हैं कि कबीर साहब, सूरदास, पलटू, नानक कौन सी यूनिवर्सिटी विश्वविद्यालय कॉलेज में पढ़े थे? आज की कौन सी डिग्री उनके पास थी? लेकिन यह डिग्री जहां खत्म हो जाती है वहां से उस विद्या की डिग्री शुरूवात होती है। वह उनके पास थी। नहीं कुछ तो भजन में ही आप लोग वह विद्या प्राप्त कर लो फिर देखो कितना ज्ञान का पिटारा खुलता है।

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