धर्म-कर्म : पेड़ पौधे मिट्टी पत्थर कागज़ कहानी से आगे बढ़कर शिव नेत्र खोलने का तरीका बताने वाले, गुरु की असली पहचान बताने समझाने वाले पूरे समरथ सन्त सतगुरु, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकांत जी महाराज ने बताया कि, कबीर सहाब ने कहा है कि- संध्या तर्पण न करूं, गंगा कभी न नहाऊ, हरि हीरा अंतर बसे, वही के नीचे छांव।

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बाबा जी ने कहा की, प्रेमियों सन्तमत में ही नहीं, अन्य मतों में भी गुरु का स्थान ऊंचा बताया गया है। सबसे पहले गोस्वामी जी महाराज ने नर मनुष्य के रूप में हरि (गुरु) को देखा, गुरु की असली पहचान को भी बताया। श्री गुरु पद नख मणिगण ज्योति सुमिरत दिव्य दृष्टि हिय होती, पैर के अंगूठे के अगले हिस्से को याद करते ही दिव्य दृष्टि खुल जाए, अंधेरे से प्रकाश की ओर चले जाएं, रु है नाम प्रकाश का ताको करे विनाश, सोई गुरु करतार। सन्तमत में कहा गया- गुरु का ध्यान कर प्यारे, बिना इसके नहीं छूटना। गुरु के ध्यान के बगैर नहीं छूट सकते हो। गुरु ही सब कुछ होते हैं।

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